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________________ समझाने पर, नियम आदि दिलवाने पर थोडे राजी हो जाते हैं। लेकिन तीसरी किस्म की प्रकृति के लोग तो धर्म की शरण में जाएँगे ही नहीं। अगर चले भी गए तो मंदिर में जाकर देवी प्रतिमा को देखकर उनके भीतर दैवीय भाव जाग्रत नहीं होंगे, बल्कि दूषित, कुत्सित भाव ही उठते हैं। ___ पुरानी धार्मिक कहानी है राजुल और रथनेमि की । हम सभी जानते हैं कि नेमिकुमार या अरिष्टनेमी जब शादी करने के लिए बारात लेकर जा रहे थे तभी उन्होंने पशुओं की करुण चीत्कार सुनी। पूछने पर ज्ञात हुआ कि बारातियों को जो भोजन परोसा जाएगा वह इन्हीं पशुओं के मांस से बनेगा। इसीलिए वे चीत्कार कर रहे हैं। नेमिकुमार उस चीत्कार को सुनकर इतने द्रवित हो गए कि उन्होंने कहा- मैं ऐसा विवाह नहीं करूँगा जिसमें मेरे कारण हजारों पशुओं का वध किया जाए। अपने विवाह को त्याग कर नेमिकुमार गिरनार की ओर निकल जाते हैं। उनके पीछे राजुल भी इसी भावना से चल देती है कि मन से उसने नेमि का वरण कर लिया है। अतः अब वह विवाह नहीं करेगी। नेमिकुमार मुनि बन गए। जिस दिन उन्हें केवल ज्ञान हुआ, राजुल ने भी दीक्षा ले ली। श्वेत वस्त्र धारण किए हुए राजुल व अन्य साध्वियाँ उनके पास जाने को उद्यत हुईं कि रास्ते में अचानक तेज बारिश होने लगी। सारे वस्त्र भीग गए। सभी साध्वियाँ बारिश से बचने के लिए इधर-उधर की गुफाओं में शरण लेती हैं। राजुल भी एक गुफा में घुस जाती है । गीले वस्त्रों का पानी निचोड़ने के लिए वह वस्त्र उतारती है कि तभी बिजली चमकती है। वहाँ गुफा में एक अन्य व्यक्ति साधना के लिए बैठा था। वह अन्य कोई नहीं, नेमिकुमार का चचेरा भाई रथनेमि होता है। रिश्ते में वह राजुल का देवर हो गया। जैसे ही उसने राजुल को देखा, मन में विचार उठा मेरे बड़े भाई तो संत बन गए और मैं भी साधना में लग गया हूँ लेकिन सामने यह क्या अद्भुत रूप है, सौन्दर्य है, नूर है। राजुल के निर्वस्त्र रूप को देखकर रथनेमि का चित्त विचलित हो गया। वह उद्विग्न होकर, साधना छोड़कर राजुल के सामने आने लगता है । पाँवों की आहट सुनकर राजुल चौंक जाती है कि गुफा में दूसरा कौन है । वह जल्दी से वस्त्र लपेटती है कि रथनेमि उसका हाथ बीच में ही पकड़कर प्रणय-याचना करने लगता है। कहता है- यहाँ कोई देखने वाला नहीं है, आओ राजुल ! हम उन्मुक्त भोगों का आनन्द लेते हैं। अभी तो जवानी है, बाद में संन्यास ले लेंगे जीवन का कल्याण कर लेंगे। राजुल ने उसे पहचान लिया कि वह उसका देवर रथनेमि है। वह कहती 99 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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