SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६ इक साधे सब सधे ___ अपने मन को नई दिशा दी जाए, नए आयाम दिये जाएं, तो यही मन प्रकृति की ओर से मिला महान पुरस्कार साबित हो सकता है। मन को अध्यात्म की ओर मोड़ दिया जाए तो मन हमारे लिए अस्तित्व की ओर से मिला उपहार बन सकता है । यह मन जो अभी विचलित लौ की तरह डगमगा रहा है अगर उसमें आने वाली विचारों के झौंकों की हवा रुक जाए तो यह मन अकंप लौ की तरह सारे जीवन को प्रकाशित कर सकता है । हमारा मन हमारे लिए सहायक बन सकता है । हमने अभी तक बुद्धि को ही भरा है, बुद्धि का ही उपयोग किया है। मन को नहीं पढ़ाया, मन को नहीं समझाया, मन को नहीं समझा। यह हमारी आध्यात्मिक वंचना रही। मन को मारो मत, मन को जीतो। मन हमारा दुश्मन नहीं; मित्र है। उससे मंगल-मैत्री साधो। मन को अपना सहयोगी बनाओ। जब भी मन न लगे तो उसे ध्यान की ओर प्रवृत्त करो। ध्यान से ही मन लगाया जा सकता है। मन का लगना ही ध्यान है। मन की स्थिरता ही ध्यान है। मन का विसर्जन, मन का मिट जाना ही ध्यान है । मन की उछलकूद का, मन के बन्दर का शान्त हो जाना ही ध्यान है । जब मन स्थिर हो जाता है, अपने स्वभाव से हटकर हमारे अस्तित्व का सहकारी बन जाता है, तब वह मन नहीं रहता । अस्तित्व का मौन बन जाता है। मन अगर उदास हो जाए तो उसका भी स्वागत किया जाए। उदासी का भी आनन्द लो। जिस क्षण उदासी में भी आनन्द लेना शुरू करते हो, उसी क्षण अन्तर्घट में शान्त, सौम्य, सुन्दर मौन घटित होता है। ऐसा मौन क्षण जिसका द्रष्टा व्यक्ति स्वयं ही होता है। उस आनन्दपूर्ण मौन के लिए उदासी के भी कृतज्ञ बनो । उदासी के प्रति आभारी रहो जो जीवन में मौन का नया सूत्र देकर जाता है । यह मरघट-मन मंदिर का माधुर्य हो जाता है। जीवन में परिवर्तन तो होगा ही। बाह्य नहीं अपितु आंतरिक परिवर्तन । गृहस्थी छोड़ने के लिए नहीं कहता, गृहस्थ-संत होने के लिए कहता हँ । कीचड़ को काटने के लिए नहीं, कीचड़ में कमल हो जाने को कहता हूँ। धन, संसार को त्याग राम हो जाने के लिए नहीं कहता, बल्कि राजमहलों के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy