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________________ ८४ लेकिन हमारा पागलपन पागलखानों के पागलों से भी अधिक खतरनाक है क्योंकि वे तो सिद्ध पागल हैं और अनर्गल प्रलाप करते मन के पागलपन को न सिद्ध किया जा सकता है और न प्रमाणित । अनर्गल प्रलाप करते मन के पागलपन की चिकित्सा का नाम ही ध्यान है । अपने पागलपन की परीक्षा करनी हो तो स्वयं को चौबीस घंटे के लिए किसी एकान्त कक्ष में बंद कर लो । बहुत मुश्किल में पड़ जाओगे, यह देखकर कि चौबीस घंटे भी तुम अकेले नहीं रह सकते । मन तड़पेगा, छटपटाएगा, परेशान हो जाओगे । वह घबड़ा उठेगा भीड़ में जाना, किन्हीं से मिलना, किन्हीं को देखना, किन्हीं में घुसना चाहेगा । 1 इक साधे सब सधे वह वैज्ञानिकों का मत है कि किसी व्यक्ति को खाने-पीने की सुविधा के साथ किसी एकान्त कमरे में तीन सप्ताह के लिए बंद कर दिया जाए, तो स्वयं से बातें करने लगेगा, बड़बड़ाने लगेगा और तीन माह में तो अनिवार्यतः पागल हो जाएगा । अन्तर् - स्वरूप में स्थित रहने का, रमण करने का ध्येय न हो, तो अकेला मन, फालतू पड़ा दिमाग शैतान का घर है । मनुष्य का मन चंचल है । मन के भीतर तीव्र कामनाएँ हैं । इन कामनाओं के कारण पीड़ाएँ भी हैं। कई शिकवे भी हैं। मन में कई खरोंचें भी लगी हुई हैं, कई अनभरे घाव भी हैं । एक नई खोज है : 'द रैमेडीज़ ऑफ फ्लावर'। इसके लेखक डॉ. बैच का मत है कि मनुष्य की सभी बीमारियाँ उसके अपने ही मन के कारण हैं। हर बीमारी उसके मन का प्रतिबिम्ब है । अगर मन की चिकित्सा कर दी जाए तो खुद-ब-खुद शारीरिक चिकित्सा हो जाती है। क्रोध मन का रोग, मन का पागलपन है । ईर्ष्या-द्वेष, वैर - विरोध, चिड़चिड़ापन, प्रतिस्पर्धा, डर, आत्महत्या की भावना, ये सभी मानसिक बीमारियाँ हैं । मनुष्य बाहर से स्वस्थ दिखाई दे सकता है, लेकिन ये मनोरोग तो लगे ही हैं । हमें मन को उद्वेगों से बचाना है, ताकि जीवन में शांति का रसास्वादन कर सकें । मन को कामनाओं से बचाना है ताकि अन्त:करण में मौन क्षण और मौन आनन्द को उपलब्ध कर सकें। ऐसा करने के लिए मन को नई दिशा देनी होगी, चेतना को नए क्षितिज और नए आयाम देने होंगे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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