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चेतना का रूपान्तरण
अंतर-तरंगों के साथ एकात्म रूप ले ले तो इससे श्रेष्ठ कुछ नहीं हो सकता।
'ओम्' को मैंने, बहुतों ने जीया है । 'ओम्' सार्वभौम है । प्रकृति की मूल-ध्वनि है । इसे ध्यान में इसीलिए सम्मिलित किया है। यह कोई मतवाद या धर्म विशेष का प्रतीक नहीं है । 'ओम्' सबसे सूक्ष्म मंत्र है, पराध्वनि । मैं तो यही कहूँगा जब भी प्रतिकूलता महसूस हो, गहरी सांस के साथ 'ओम्' को अंदर जाने दीजिए और बाहर आने दीजिए। तीन बार ऐसा कीजिए आप खुद ही अपूर्व शांति का अनुभव करेंगे । मन-मानस को संयमित पाएंगे।
पूर्णमिदः पूर्णमिदम् पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।
कृपया, पूर्ण से पूर्ण निकालने पर किस प्रकार पूर्ण शेष रहता है, स्पष्ट
करें।
पूर्ण में से अधूरा निकालोगे तो अधूरे बचोगे और जब पूर्ण में से पूरा निकालोगे तो पूर्ण ही रहेगा। शून्य से शून्य का गुणा करोगे तो क्या होगा? शून्य में से शून्य घटाओगे तो क्या बचेगा? शून्य में शून्य का भाग दो तो क्या होगा? शून्य में शून्य जोड़ो तो क्या मिलेगा? हमें गणित का आभारी होना चाहिए अन्यथा यह सूत्र बहुत-सी उलझनें खड़ी कर देता । गणित ने सिद्ध किया कि शून्य का परिणाम शून्य । पूर्ण से आए हो, पूर्ण में समा जाओगे। एक बिंदु के रूप में अवतरित होते है। शरीर आकार लेता है। एक दिन पुन: बिंदु के रूप में रह जाते हो और अस्तित्व में लीन हो जाते हो । इसीलिए कहा गया है पूर्ण से आता है व्यक्ति और पूर्ण में समाविष्ट हो जाता है।
बीज से बरगद बनता है, मनुष्य से मनुष्य विकसित होता है। पूर्ण से पूर्ण मुखरित होता है । यह पूर्णता की यात्रा सूक्ष्म से विराट की और विराट से सूक्ष्म की यात्रा है। गंगोत्री से गंगासागर की और गंगासागर से गंगोत्री की।
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