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________________ इक साधे सब सधे है। मेरी समझ से, जो लाश में और स्वयं में फर्क करना जानता है, वह स्वयं को जान लेता है । लाश को देखकर भी, जो रूह को न समझ पाया, उसके प्रति संदिग्ध रहा, वह खुद लाश है। मृत है। अपने में आत्म-अस्तित्व देखो, न केवल अपने में, वरन् औरों में भी। सबके प्रति आत्मवत् व्यवहार-आत्मवत् भाव रखो। अगर ऐसा हुआ तो आविर्भाव तुम्हारा चाहे जब हुआ, भविष्य तुम्हारे हाथ होगा। अ सि आ उ सा, अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्व साधुभ्यः, णमो अरिहंताणं आदि नमस्कार-मंत्र, इनके अतिरिक्त अन्य कोई महामंत्र का संक्षिप्त या बड़ा रूप है ! वह कौनसा है ! इनमें से सर्वश्रेष्ठ अनुकरणीय, मननीय, पठनीय, चिन्तनीय कौन-सा पाठ है ! आप मुझे चुनने को कहते हैं। माफ कीजिए मैंने वोट देना बंद किया हुआ है। किसको छोडूं और किसको अपनाऊं। जब मंत्र है, तो मंत्र है। और मंत्र का अर्थ होता है जिसका मनन किया जा सके। मनन तो करते नहीं, माला लुढ़काए चले जाते हो। कहीं ठहरते नहीं, स्थिर होते नहीं। अस्थिर चित्त हो स्थितिकरण चाहिये। फिर भी जानना ही चाहते हो तो 'ओम्' ही ऐसा मंत्र है जो बीज मंत्र है। प्राय: सभी मंत्रों के प्रारम्भ में ओम् लगता है। यह सारे मंत्रों का मंत्र है। मंत्र के द्वारा, मंत्र की सहायता से ध्यान में उतर सकें इसीलिए सुबह के चैतन्य ध्यान में 'ओम्' जोड़ा गया है। दरअसल, मंत्र जितना छोटा और सूक्ष्म होगा उतना ही प्रभावशाली होगा। जितना बड़ा मंत्र होगा मन को उलझाने में सहयोगी होगा। वृक्ष को उत्पन्न करने के लिए वृक्ष की नहीं, बीज की आवश्यकता है। बीज में ही बरगद की संभावना है। आज जिसे छोटा समझकर उपेक्षित कर दिया जाता है अगर उसकी संभावनाएँ जाग्रत हो जाएं तो वह विराट रूप ले सकता है। अणु-बम और परमाणु-बम की विस्फोटक क्षमताएँ आज सभी को ज्ञात हैं। इसलिए मंत्र भी यदि सूक्ष्मतम हो और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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