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चेतना का रूपान्तरण
आकार । आत्मा के रूप और आरम्भ आदि के झंझट में न पड़ें तो ही बेहतर है। आखिर सर्वज्ञ भी यहाँ आकर मौन हो गए और जिसने जवाब देने का प्रयास किया वे अभिव्यक्ति न दे पाए। यह तो वह सत्य है जिसे 'नेति-नेति' ही परिभाषित कर सकता है । जिसने जाना वह कह नहीं पाया और जिसने कहने की कोशिश की, वह भी अधूरा ही रह गया।
तुम तो आज क्या हो, यह देखो। आज तुम्हारी आत्मा का क्या स्वरूप है इसे जानो। विकृत आत्मा हो या संस्कारित, पता लगाओ। अपने भीतर उतरकर यह देखो कि तुम्हारी आत्मा मनुष्य की आत्मा है या पशुता की आत्मा । अपने भीतर जाकर ही जान सकोगे कि तुम्हारी आत्मा का आदि रूप कैसा है।
तुम्हारा आज जो रूप है, तुम्हारी आत्मा का आज वही रूप है। अगर तुम शरीर की पर्यायों को आरोपित समझते हो, तो तुम्हारी आत्मा की वर्तमान स्थिति भी आरोपित है । काया तुम्हारे साथ है, तो वह कायनात भी तुम्हारे साथ है। तुम्हारी सीमा में वह असीम है । तुम्हारे साकार में वह निराकार है । तुम्हारी धड़कन में उसी की निनाद है।
___ आत्मा तो बिल्कुल ऐसी है, जैसे बिजली के बल्बों में तारों में बहती करंट होती है। तारों में बहती विद्युत दिखाई नहीं देती। अरूपी है उसका रूप । अरूप ही उसका रूप है । आत्मा के प्रकाश को देखा जाता है, बिजली को नहीं देखा जा सकता । जो वैज्ञानिक बिजली की परिभाषाएँ कर रहा है, वह भी बिजली को नहीं देख पाया होगा। बिजली का प्रभाव ही बिजली को अहसास करा देता है । तुम अगर एक लाश को देखो और फिर उसी के साथ अपने आपको देखो। यह देखना ही तुम्हें आत्म-दर्शन करा देगा, आत्मज्ञान करा देगा । स्वयं को सिद्ध करा देगा।
आत्मा जीवमात्र का त्रैकालिक सत्य है, सबका, स्वयं का प्राण है, महाप्राण है । आत्मा सूक्ष्मतम है । ध्यान सूक्ष्म की ओर बढ़ने का प्रयत्न है। रूप से अरूप की ओर उठने का नाम ही जीवन में अध्यात्म का अंकुरित होना
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