SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ इक साधे सब सधे ध्यान करते हुए यह शरीर जो इतना ठोस मालूम होता है एकदम हल्का हो जाता है, इतना सूक्ष्म कि केवल तरंगें-ही-तरंगें तथा पोल-ही-पोल और कुछ भी नहीं, कृपया समझाएँ। सामान्यतया मनुष्य का शरीर ठोस होता है। लचीला होते हुए भी ठोस । लेकिन जब ध्यान में उतरते हो तो तुम्हारा शरीर के साथ जो तादात्म्य है, जिसके कारण शरीर ठोस लगता है वह तादात्म्य टूटता है और तुम ऊपर उठते हो । यह ऊपर उठना ही शरीर के ठोसपन को हल्का कर देता है । ठीक ऐसे ही जैसे कोई पानी में उतरे और हल्के हो जाए। एक पन्द्रह साल का लड़का भी, अगर आप पानी में डूब रहे हो तो बाल पकड़ खींचकर बाहर निकाल देगा। डूबोगे तो हल्के होओगे ही। डूबने से कतराए तो जितने ठोस अभी हो उससे अधिक ठोस हो जाओगे। यह तो वह मार्ग है जहाँ इबने वाला उबर जाता है। शरीर से तादात्म्य हटने पर हमारे भीतर इतनी सूक्ष्म तरंग हो जाती है कि एक बार 'ओम्' बोलो तो अन्तस् का ब्रह्माण्ड परिव्याप्त हो जाता है। तभी 'ओम्' का उपयोग सार्थक होता है जब ध्यान में इतनी सूक्ष्म तरंग बनती है । इसके पूर्व तो ध्यान में उतरने का अभ्यास चलता रहता है कि शरीर से अलग हो जाएँ, मन से रिक्त हो जाएँ, भीतर एक शून्य उभर आए, जैसे बाहर आकाश है वैसा ही आकाश अन्दर उभर आए। इसके पश्चात् जो होगा वह अत्यन्त प्रभावी होगा। परमात्मा करे वह प्रभाव आपके जीवन में व्याप्त हो । . वीर्यकण में जो ऊर्जा है क्या शरीर के दूसरे कणों में उतनी नहीं है ? वीर्य खोकर भी क्या कोई ध्यान को उपलब्ध हो सकता है? उसे कैसे बचाया जाए। बचाने की कोशिश जाग्रत अवस्था में तो संभव है पर स्वप्न में नहीं। कृपया इस पर सुझाव देने की कृपा करें। ध्यान को ऊर्जाशक्ति चाहिए। ध्यान को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy