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________________ चेतना का रूपान्तरण ७५ आत्मसात् होगी, आज नहीं तो कल, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में । बिना आत्म-रूपान्तरण के आत्म-मुक्ति नहीं हो सकती। आज भले ही कीचड़ में तुम्हें सुख लगे, लेकिन जिस दिन कीचड़ के सुख से ग्लानि उभर जाएगी उस दिन तुम जानोगे कि तुम्हारी आत्मा परिवर्तन के लिए कितनी छटपटा रही है । परिवर्तन तो होगा ही। अच्छा होगा आप छोटी-छोटी दीक्षाएँ लें । बड़ी दीक्षा हो सके या न हो सके, छोटी-छोटी दीक्षाएँ तो ली जा सकती हैं। कल तक आप अपने बेटे को डाँटते रहे अब डाँटना बंद कर दिया, दीक्षा हो गई। कुछ मन बदला, कुछ दृष्टि बदली । अगर कल तक सिगरेट पीते थे, किसी व्यसन से ग्रस्त थे और अगर आज संकल्प जग गया कि कब तक सिगरेट पीते रहेंगे, इसी ने हमको पी लिया है, यह संकल्प जगा कि दीक्षा हो गई। यह आत्म-दीक्षा है । किसी भी बुरी आदत को टालो, दीक्षा हुई। सम्राट अशोक ने कलिंग-युद्ध किया । लाखों प्राणियों की हत्या हुई। सम्राट ने विजय का उत्सव, जीत का जश्न मनाया। कुछ भिक्षु अशोक के पास पहुँचे और पूछा 'तुम किस जीत का जश्न मना रहे हो? इस हिंसा का जश्न ? इस त्रासदी का जश्न ?' तब एक क्रांति घटित हुई। सम्राट बदला । सम्राट के हृदय में हिंसा की जलने वाली होली करुणा के झरने में बदल गई। मेरी दृष्टि में यही वह क्षण था जब सम्राट की दीक्षा हुई। कल तक अगर कोई डाकू फूलन देवी थी और आज वह आत्मसमर्पण कर सामाजिक सेवा के लिए कृतसंकल्प हुई यह उसकी दीक्षा हुई। हर इन्सान गिरा हुआ है, मैं भी हो सकता हूँ, आप भी हो सकते हैं। संभव है कि नब्बे मार्गों पर हम ऊँचाइयों को छू रहे हों और दस मार्ग ऐसे हों जहाँ हम गिरे हुए हों। उन दस मार्गों को छोड़ने के लिए कृतसंकल्प होना दीक्षा की ओर कदम बढ़ाना है। दीक्षा तो प्राणिमात्र के लिए अनिवार्य है। क्या पता कोई चण्डकौशिक बदल ही जाए महावीर के सत्संग से और डंक मारना त्याग कर दे। इन्सान देवत्व को उपलब्ध होगा या नहीं यह तो हम पर निर्भर है, पर एक सर्प देवत्व को उपलब्ध हुआ, दीक्षा के घटित होने पर । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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