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बरगद से अलग नहीं किया जा सकता ।
मोह के संसार से ऊपर उठो और प्रेम के संसार को असीम होने दो । राग के बंधन नहीं, प्रेम के संबंध हों । तुम तो प्रेम की प्याली बनो, दिव्य प्रेम की प्याली । अपनी छलकती प्याली से संत्रस्त और पीड़ित मानवता को, प्राणिमात्र को जितना सुख और सुकून दे सकते हो, अवश्य दो
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सबसे प्रेम करो । प्रेम को ध्यान ही हो जाने दो। इंसानों से तो प्रेम करो ही, वृक्षों से भी प्रेम करो। अपने हृदय से उनका भी आलिंगन होने दो । फूलों से प्रेम करो, उन्हें पुचकारो, उन्हें अपने होठों से स्पर्श करो। इस स्पर्श की सुखानुभूति और ध्यान में डूब जाओ। तुम एक अलग ही आह्लाद से भर उठोगे । तुमसे फूल खिलेंगे और तुम फूलों से। ऐसे ही जीवन में आनन्द का सवेरा होता है ।
इक साधे सब सधे
मेरा प्रेम आप सब तक पहुँचे अनन्त रूप में, अनन्त वेश में, सदा-सर्वदा । नि:संशय भाव से आगे बढ़ो, फिर मैं तो आपके साथ हूँ ही । मेरा प्रेम आपके साथ है । हम सब एक-दूसरे के साथ हैं ।
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· प्रभु श्री, मानव-जीवन में दीक्षा का महत्व ! क्या भवसागर पार करने के लिए दीक्षा लेना अनिवार्य है ?
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मेरे लिये दीक्षा का अर्थ है रूपांतरण, परिवर्तन | मन का, हृदय का । परिवर्तन और रूपांतरण चाहे जब और चाहे जिस क्षण घटित हो सकता । किसी और की मदद से भी आप रूपांतरित हो सकते हैं और स्वयं के संकल्पों से भी स्वयं को परिवर्तित कर सकते हैं । दीक्षा तो जीवन में अनिवार्य है। दीक्षा नहीं है तो जीवन भी नहीं है। दीक्षा का पर्याय ही रूपान्तरण है, तो अनिवार्यतः रूपान्तरण होना ही चाहिए । अगर स्वयं को रूपान्तरित नहीं करोगे, तो क्या सदा-सदा के लिए जन्मों-जन्मों तक नरक को ही जीते रहोगे ? हमेशा पशुता को ही जीते रहोगे ? दीक्षा तो जीवन में
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