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________________ का, देह और विदेह का अन्तर्संबन्ध और अन्तर्विरोध जारी है । आत्मविकास और आत्मसिद्धि जीवन के चेतनागत सत्यों का आधार और प्राण है । भारत के आर्ष-पुरुषों ने मानव-चेतना को उसकी निर्ग्रन्थता और निर्द्वन्द्वता के लिए अन्तर्बोध प्रदान किया है । उसे छिलकों को हटाकर फल खाने की कला दी है। क्या करना है और किससे बचना है, जीवन के मंगलकलश को पूरने के लिए यही तो जन-मन को जानने की बात है I 'इक साधे सब सधे' ध्यान मार्ग द्वारा चेतनागत सत्यों से साक्षात्कार के पहलुओं से जुड़ी हुई पुस्तक है। इसे हम पुस्तक न समझें । यह तो ज्ञात और उन्मुक्त सत्य को मिली सहज अभिव्यक्ति है । साधकों से कही गई बातें और उनके द्वारा व्यक्त की गई जिज्ञासाओं पर बोले गये वक्तव्य इसमें संकलित हुए हैं। प्रिय आत्मन् 'मीरा' जी ने उन बातों को लिपिबद्ध किया है और अजमेर ध्यान शिविर में दिये गये ये तथ्य जनचेतना के लिए सहज सुलभ हो गये हैं । जो जिन्हें श्रद्धा के मंच पर आसीन कर लेते हैं, वे उन गुरुजनों की सेवा का वह कोई भी मार्ग चुन लेते हैं, जिसकी उनमें सहज योग्यता- क्षमता है । 'इक साधे सब साधे' में गहराई है, एक ऐसी गहराई जिस पर कुछ कहकर नहीं, जिसे जीकर, जिसमें उतरकर जीवन और चेतना के अन्तर्मर्म का स्वामी हुआ जाता है । ये तो अन्तर - देहरी से भीतर - बाहर बिखर रही रोशनी के कण हैं । रोशनी सबको लाभान्वित करे, उसी में सर्व-सिद्धि का सौभाग्य निहित है । अन्तर्मन की ग्रन्थियों को पहचानने और उनसे मुक्त होने के लिए हम कायोत्सर्ग और आत्मध्यान का उपयोग करें । यह मार्ग जन-जन की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करे, यह अन्त: कामना है । नमस्कार । Jain Education International For Personal & Private Use Only - चन्द्रप्रभ www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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