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________________ चेतना का रूपान्तरण का मिलन भी ऐसे ही होता है । ढूंढ़ने जाओ, तो न मिले, बिन माँगे ही मोती मिल जाते हैं । ‘यूं अचानक मुलाकात हो गई' । मिलन अकस्मात् ही होता है । मिलने का जैसे ही सही वक्त आता है, मिलन हो जाता है। दोबारा मिलना हो, तो उसके लिए मेहनत फलदायी हो सकती है, पर पहली मुलाकात तो अचानक-अकस्मात् ही होती है। मैंने कहा अचानक, पर सच तो यह है वियोग की वेला के अंधकार के छँटते ही, विरह का कुहासा हटते ही मिलन हो जाता है, जीवन में सूर्योदय हो जाता है। कुदरत मिला ही देती है । न मिलाये तो सौ वर्ष भी न मिलाये, कई जन्मों तक न मिलने दे । मिलाना चाहे तो वह एक ही झलक में मिला देती है, बिन चाहे, बिन माँगे ही मिला देती है । मिलने की इच्छा न थी, फिर भी अचानक मुलाकात हो जाती है । ६९ मिलने की इच्छा रखो, तो मिलना होता ही नहीं है । कितना तड़फना पड़ता है। कितनी प्रतीक्षा करती पड़ती है । प्रतीक्षा परीक्षा बन जाती है । चकवा-चकवी अगर बिछुड़ जाये, तो कई रातें गुजर जाती हैं एक-दूजे से मिलने की तड़फ में, पिऊ-पिऊ की रटन- पुकार में । चातक मुँह खोले बादलों की टोह लेता रहता है, स्वाति नक्षत्र की प्रतीक्षा करता है, बस एक बूँद मिल जाये । इक बार दिखाकर चले जाओ झलक अपनी हम जल्वए-पैहमके तलबगार कहां हैं ? प्रतिदिन और प्रतिक्षण दीदार मिले, पर तलबगार तो मात्र एक झलक पाना चाहता है । एक झलक में ही वह अपने आपको निहाल समझेगा, धन्यवाद और आनंद से भर उठेगा। तुम्हें तो झलक मिल ही चुकी है। जीवन की यात्रा में यह मिलन बिल्कुल ऐसे ही है जैसे बे-तलब, बे-दुआ राहगीर को कोई मोती मिल जाये । Jain Education International मुझे नहीं लगता कि यह मुलाकात अचानक हुई हो । जीवन में संचित हुई अभीप्सा ने ही यह मिलन कराया । जबसे तुम्हारी अपनी ओर नज़र उठी है, तुमने स्वयं को एक अलग ही प्यास से भरा हुआ पाया है। मिलना तो कइयों For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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