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चेतना का रूपान्तरण
[ संबोधि-ध्यान-शिविर, अजमेर; ९-६-९६, प्रश्न-समाधान ]
यूं अचानक मुलाकात हो गई जैसे राहगीर को बे-तलब बे-दुआ राह में एक मोती मिले !
क्यों ऐसा होता है? सौभाग्य ! बिन माँगे, बिन चाहे, बगैर दुआ-मिन्नत के अगर मोती हाथ लग जायें, तो इसे अपना सौभाग्य समझो। रास्तों पर चलते तो सभी हैं, प्रार्थना और दुआ तो सभी करते हैं, मगर मिलता है किसी-किसी को ही। संयोग ही मिलाते हैं और संयोग ही वियोग करा देते हैं। अच्छे नसीब वालों को अच्छे लोग मिलते हैं और बुरे नसीब वालों को बुरे लोग, यह तो सीधा-सादा नियम हआ। संयोग उसे कहेंगे जब बरे नसीब वालों को भी अच्छे लोग मिल जायें । पत्थरों में फूल ऐसे ही खिलते हैं । मित्र और प्रेमीजनों
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