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हृदय के खुलते द्वार
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होगा मनोविकारों और मनोकषायों से स्वयं को अलग करने के लिए सब लोग हृदय के द्वार पर दस्तक दें, हृदय के हो जाएं । अरविंद कहते हैं कि हृदय ही चैत्य-पुरुष का स्थान है। चाहे जो हो, चाहे वह चैत्य-पुरुष का स्थान हो या चैत्य-प्रकृति का, मैं तो इतना ही जानता हूँ यह चित् का स्थान अवश्य है, सत् का स्वरूप अवश्य है, आनंद का निर्झर अवश्य है। हृदय सच्चिदानंद की आत्मा है।
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