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________________ इक साधे सब सधे हृदय तो स्वयं भावना का मंदिर है, पूजा का घर है, जीवन का आधार है । जब मन शांत होता है, तो हृदय का वह द्वार खुलता है, जिसे हम आनंद का द्वार कहेंगे। जब मन पसीजता है, तो हृदय से वह निर्झर फूटता है, जिसे हम करुणा का निर्झर कहेंगे। जब मन प्रफुल्लित होता है, जब मन एक प्राण दुई गात' बनता है, तो जीवन में प्रेम की वह रसधार बरसने लगती है, जिसे हम हृदय का प्रेम कहते हैं। हृदय आधार है, हृदय सेतु है, हृदय रस है । हृदय का अपना स्वाद है, अपना प्रकाश है । मन के निरोध के लिए, मन से मुक्त होने के लिए, मन को मौन करने के लिए बस एक बैठक चाहिये, जिसे हृदय की बैठक कहते हैं। हृदय में जीने वाला आदमी दुनिया का सबसे जीवंत आदमी है। उससे ज्यादा प्रेमपूर्ण, रसपूर्ण, आनंदपूर्ण आदमी मिलना कठिन है। ध्यान का जो सार-सूत्र है, जो रहस्य की बात है, वो इत्ती-सी है – मन से मुक्त बनो, हृदय में उतरो और अपने भीतर के आकाश में निमग्न रहो, आत्मलीन रहो, पारब्रह्म के संगीत से ओत-प्रोत रहो। मैंने हृदय के खुलते द्वारों को देखा है । मैंने अपने को भी, औरों को भी, हृदय की निर्झरणी में स्नान करते पाया है । मैं इतना-सा ही कह सकता हूँ कि तुम्हें अगर जीवन के गहरे सुख को जीना है, तो हृदय के होकर जीयो। हृदय के होकर स्वयं को और औरों को जीयो । मन-मस्तिष्क के होकर काफी जी लिये, अब कुछ हृदय के होकर जीयो । हृदय के धरातल पर एक अलग नृत्य है, वृंदावन की एक अलग ही रास-लीला है । कुंडलिनी-योग में तो हृदय को अनाहत कहा है। हृदय स्वयं चक्र है। हृदय का जागरण जहाँ मेरी समझ से बोधि और अन्तर्दृष्टि का कारण बनता है, वहीं परामनोवैज्ञानिक शक्तियाँ भी प्रवाहित होती हैं । हृदय को कोई मामूली केंद्र न समझें। यह जीवन का स्वर्ण-कमल है, एक ऐसा छिपा हुआ गुलाब, एक ऐसा 'मिस्टिक रोज़' है, जिसकी पंखुड़ियाँ तब खिलती हैं, जब ईसाई साधक कहते हैं हृदय में ईसा-रूप बालक का जन्म होता है। अच्छा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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