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हृदय के खुलते द्वार
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संबोधि ध्यान-शिविर, अजमेर, ९-६- ९६, प्रवचन ]
मे
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रा लक्ष्य जीवन है । जीवन को जानने के प्रति होने वाली जिज्ञासा से ही वास्तविक धर्म का जन्म होता है। धर्म का प्रारम्भ किसी पुस्तक से नहीं, वरन् जीवन से है । जीवन से ही धर्म का शुभारंभ होना चाहिए और धर्म के मार्ग से गुजरने के बाद हमारे अनुभव, हमारे परिणाम, जो सम्पादित हों वही जीवन के अनुभव और जीवन की किताब बन जाए । पुस्तकीय ज्ञान केवल बुद्धि और मस्तिष्क का विकास करता है । इससे जीवन में वह फूल नहीं खिलेगा जिसकी सुवास से वातावरण सुरभित होता है, पर्यावरण प्रफुल्लित होता है, जीवन कुसुमित और आनन्दित होता है ।
सम्पूर्ण जगत में महान - से- महान शास्त्र उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें पढ़ने के लिए मनुष्य के पास फुर्सत नहीं है और अगर समय है भी तो
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