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इक साधे सब सधे
अब, जब स्वयं को पुनर्जन्म देना हो, तो भीतर तो ऐसा परिपाक होगा ही । ऐसा होता है, इसलिए चिन्तित होने जैसी कोई बात नहीं है । कुछेक का गर्भ काल ऐसा होता है कि पता भी न चले और आराम से परिपाक हो जाता है। कुछेक के लिए प्रसूति इतनी पीड़ादायी और घुटन भरी होती है कि मानो किसी को जन्म देने के लिए नारी ने अपना जीवन ही मृत्यु की डगर पर खड़ा कर दिया हो।
"कभी-कभी लगता है कि नाड़ियाँ, शरीर सब टूट जाएगा, अत्यन्त तनाव-सा प्रतीत होता है"। टूटता कुछ नहीं है । ध्यान से किसी का शरीर नहीं टूटा है। शरीर के प्रति रहने वाला भाव, मूर्छा भले ही टूट जाये, शरीर नहीं टूटता । नाड़ियाँ टूटती नहीं हैं, नाड़ियों में अतिरिक्त ऊर्जा का एकत्रीकरण हो सकता है । तुम कहते हो 'अव्यक्त तनाव-सा महसूस होता है। तुमने ध्यान में तो प्रवेश किया, मगर मन को पहले शिथिल नहीं किया। तनाव भरे मन से ध्यान में उतरे । ध्यान में प्रवेश करने से पहले मन को हर तनाव से दूर खड़ा करो। और इसके लिए ही दो तरह की प्रक्रिया है। एक है कायोत्सर्ग और दूसरी है तनावोत्सर्ग । कायोत्सर्ग शरीर के तनाव और दर्द को विसर्जित करने के लिए है, थकावट से राहत पाने के लिए है, जबकि तनावोत्सर्ग मन को, शरीर के रोम-रोम और अंग-अंग को प्रसन्नता से भर देने के लिए है। तनावोत्सर्ग खिलावट की विधि है।
हाँ, आपके लिए सुझाव है कि आप ध्यान और प्राणायाम करते वक्त तीव्र श्वास-प्रश्वास को, कपाल भस्त्रिका को तभी करें जब आपको लगे कि मन शान्त हो ही नहीं रहा है। कपाल भस्त्रिका मन की उच्छंखलता को चोट पहुँचाने के लिए है। तीव्र श्वास-प्रश्वास से मन कुछ देर के लिए विलीन हो ही जाता है।
एक बात और, ध्यान-योग में कभी भी अकड़कर मत बैठो। सीधे बैठो, मगर ,ठ की तरह अकड़कर नहीं । सहजता से ध्यान में प्रवेश करो और सहजता से ही ध्यान की बैठक को पूरा होने दो । प्राणायाम पर तभी तक ध्यान दिया जाना चाहिये, जब तक ध्यान का गुर हाथ न लगे। ध्यान का गुर हाथ
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