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मन हो मौन, हृदय हो जाग्रत
[ संबोधि-ध्यान-शिविर, अजमेर; ८-६-९६, प्रश्न-समाधान]
. जब गहरे ध्यान में प्रवेश करते हैं तो श्वास क्षीण और शरीर जड़ होने लगता है, कभी-कभी प्रतीत होता है शरीर बहुत स्थूल हो गया है, कभी अति सूक्ष्मता महसूस होती है। ऐसा क्यों?
शरीर भौतिक पदार्थों की जीवंत कृति है। शरीर जीवन का आधार है। शरीर से जीवन की भाषा प्रारम्भ होती है। इसने हमें मूर्त रूप दे रखा है। शरीर से तुम मुक्त हो जाओ, शरीर-भाव प्रक्षीण हो जाये, तो तुम्हीं निराकार ब्रह्म हुए, विदेह-मुक्ति को उपलब्ध हुए।
श्वास शरीर का आधार है। श्वास तो सेतु है – अन्तर्जगत् और बहिर्जगत् के बीच का । श्वास तुम्हारा प्राण है, श्वास प्राणों का पोषक है। श्वास की संतुलितता और लयबद्धता शरीर की स्वस्थता और लयबद्धता है। श्वास लड़खड़ायी यानी शरीर लड़खड़ाया। श्वास तो मानो जीवन की नींव
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