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लिए मैंने यह घटनाचक्र रचा, वह
जो कुलटा
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सम्राट ने जिज्ञासा प्रगट की, तब भगवान ने कहा तुम नासमझ हो सम्राट ! तुम्हारे पास इतनी भी सोचने की क्षमता नहीं कि एक महारानी क्यों किसी से ऐसे संबंध रखेगी। तुमने यह उसी से क्यों न पूछा ? मैं तुम्हें बताता हूँ । दरअसल कल शाम को जब वह मेरी सभा से वापस जा रही थी, तो रास्ते में उसने एक संत को एक पाँव पर खड़े होकर तपस्या करते देखा । संत निर्वस्त्र थे । चेलना ने उसे प्रणाम किया और महल पहुँच गई। रात को सोते समय जब चेलना का हाथ बंद कमरे में रजाई से बाहर निकला तो उसे सर्दी की प्रचंडता महसूस हुई। वह सोचने लगी कि जब मेरी यह हालत है तो उनकी क्या हालत होगी । संत आत्मस्थित हैं, यह जानकर उसके अन्तर्हृदय में श्रद्धा का भाव जाग पड़ा ।
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एक साधे सब सधे
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सम्राट महल की ओर लपका। वह सिहर उठा कि कहीं आग तो नहीं लगा दी गई । वह जानता था अभयकुमार कभी उसके आदेश की अवहेलना नहीं करता था । उन्होंने आधा ही रास्ता तय किया था कि अभयकुमार मिल गया। सम्राट ने पूछा, तूने कहीं आग तो नहीं लगा दी । अभयकुमार ने कहा प्रभु मैंने आग लगा दी है। सम्राट गिड़गिड़ाने लगा यह तो मुझसे भयंकर अपराध हो गया । उस सती के साथ यह मैंने क्या कर डाला। बेटे ने कहा पिताश्री, चिंता मत कीजिए । मैं जानता था आपने जरूर कोई ऐसा निर्णय लिया है जिसे लेते समय आपका सोच, आपका चिंतन निश्चित ही क्रोधित और उद्विग्न रहा होगा, तभी आपने ऐसा फैसला लिया है। इसलिये मैंने आग बहुत दूर लगाई है, जिसे महल तक पहुँचते-पहुँचते वक्त लग जाएगा। सम्राट ने सुना तो राहत की सांस ली। उन्होंने आग बुझाने के आदेश दे दिये ।
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हम अपने में टटोलें किं कहीं ऐसी आग हमने भी तो नहीं लगा डाली है । अपने ही असद् विचारों की आग, अपने ही निकृष्ट सोच की आग । अच्छा होगा आज की रात आप अपने विचारों से जुड़ें, उन्हें परखें, अपनी सोच की समीक्षा करें और देखें कि किस तरह की सोच भीतर चलती है । किस तरह के विचार उठते हैं। क्या ऐसे कोई सकारात्मक सूत्र, कोई सृजनात्मक दृष्टिकोण है
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