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________________ विचारों की विपश्यना ४९ आग-बबूला हो जाते हो । उस समय तुम्हारा कर्त्तव्य था कि तुम माँ के पक्ष को भी सुनते। हो सकता है पत्नी की शिकायत सही हो, मगर गलती कभी एकतरफा नहीं होती । तुम पत्नी को भी सुनो और माँ को भी। दोनों को सुनने के बाद तुम्हें अपनी ओर से जो कुछ भी कहना हो, प्यार से कह डालो। तुम्हारे उस निर्णय में, उस अभिव्यक्ति में उग्रता नहीं होगी, क्रोध और आवेश नहीं होगा। उस उद्गार में तुम्हारी सही सोच मुखरित होगी। क्षण चाहे अच्छे हों या बुरे, निर्णय लेते समय पूरा-पूरा विवेक रखा जाय। अगर उग्रता के पलों में आपने कोई निर्णय ले लिया तो यह निर्णय पश्चाताप का सबब बन सकता है । मुझे याद है बहुत पुरानी कहानी है - कहते हैं सम्राट श्रेणिक अपनी सुख-शय्या पर सोया हुआ था। उसके पास ही उसकी महारानी चेलना भी सो रही थी। तीव्र ठंड का मौसम था। रजाइयों में भी सर्दी नहीं रुकती थी। अचानक रानी का हाथ रजाई से बाहर निकल गया और सर्दी से ठिठुर गया। रानी के मुँह से निकला ! ओह ! उनका क्या होता होगा, वे कैसे रात गुजारते होंगे। संयोग की बात कि चेलना के इन मंद स्वरों को सम्राट ने सुन लिया। सम्राट संदेह से घिर गया। उसने सोचा, रानी चेलना का किसी के साथ संबंध है, इसके शब्द साफ-साफ यह बात कह रहे हैं। अगले ही दिन सम्राट ने राजमहल का त्याग कर दिया। उसने अपने पुत्र अभयकुमार को जो उसका मंत्री भी था, आदेश दिया कि किसी को कानों-कान खबर न हो और राजमहल को आग लगा दी जाय । वह चौंका राजमहल में तो मेरी माँ है पर क्या किया जाए, सम्राट का, पिता का आदेश था। उस समय लोग पिता के आदेश पर कुछ भी कर सकते थे, वनवास भी ले लेते थे। आज तो पिताओं को वनवास न दे दें तो बलिहारी है। अभयकुमार कशमकश में था। एक तरफ पिता का आदेश और दूसरी ओर अनिष्ट की आशंका । लेकिन उसने इतना ही कहा – जैसा सम्राट का आदेश। सम्राट् वहाँ से भगवान महावीर के सभामंडप में पहुँचे । भगवान का उपदेश चल रहा था। महावीर ने चर्चा के दौरान कहा, तुम्हारी रानी चेलना धन्य है, उसका सतीत्व, उसके विचार धन्य हैं । इस तरह के विचार सम्राट ने सुने, वह चौंका कि भगवान चेलना के लिए ऐसी बात कह रहे हैं वह चेलना जिसके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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