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विचारों की विपश्यना
चूंकि हम विचारों और चिंतन में जीते हैं तो क्यों न इस चिंतन को नई दिशा दें, वह आयाम दें कि हमारा जीवन एक सकारात्मक और सृजनात्मक रूप लेकर उभरे । हमारा जीवन बिना किसी व्यग्रता के, बिना किसी आक्रोश और आवेश के, बिना किसी तनाव के सानंद सम्पन्न हो सके। हमारा जीवन हमारे लिए आनंद, उत्सव और महोत्सव बन सके।
उत्थान, सृजन, प्रेम और आनंद से भरे विचारों को अपने जीवन में रखोगे तो ही दया, करुणा और प्रेम प्रतिबिम्बित होगा। अगर आप अपने घर के वातावरण को बहुत ही सौम्य, निर्मल और परस्पर त्याग करने वाला बनाना चाहते हैं तो घर के हर सदस्य को प्रेरणा दो कि वह कभी भी गलत विचार न लाए । हमेशा ऊँची सोच रखे। अपने बच्चों को, अपने परिवार को वह संस्कार दो कि वे ऊँची सोच के स्वामी बनें, सम्यक् विचारों के सम्राट बनें ।
मुझे याद है : राजा मिडास ने देवताओं की प्रार्थना की और उसकी लंबी प्रार्थना को सुनकर देव प्रसन्न हुए और प्रकट हुए। देवताओं ने प्रकट होकर कहा – मिडास माँगो, तुम हमसे क्या माँगना चाहते हो। सम्राट के विचार तो वैसे ही होंगे जैसी उसकी आसक्ति होगी, जैसी उसकी मूर्छा होगी। मिडास ने देवताओं से माँग की कि देव अगर आप वाकई मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दो कि मैं जिस चीज को छुऊं वह सोने की बन जाय । देवताओं ने वरदान दे दिया।
मिडास खुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था। वह सोचने लगा अब मेरे राज्य में सोने की कमी नहीं रहेगी। मैं जिस किसी चीज को हाथ लगाऊँ, वह सोने की बन जायेगी। वह सिंहासन पर बैठा। उसका स्पर्श होते ही सिंहासन सोने का हो गया। वह पागल सा हो गया। उसके छूने से महल का कायाकल्प हो गया। सभी ओर सोना ही सोना । उसकी बिटिया ने जब यह चमत्कार देखा तो वह भी खुशी से झूम उठी। पिता को बताने के लिए उनके कक्ष की ओर दौड़ी। कक्ष में पहुँचकर उसने पिता को गले लगाया। वह अपनी खुशी का इजहार भी न कर पाई कि सोने की मूर्ति में बदल गई । सम्राट पहली बार चौंका । सब खुशियाँ काफूर हो गईं, खुशियों के फूल क्षणभर में ही मुरझा गए। भूख लगी तो सम्राट खाने बैठा, मगर जैसे ही भोजन को
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