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विचारों की विपश्यना
हमारी हर गतिविधि अन्ततः हमारे सोच-विचार का ही प्रतिनिधित्व करती है और हमारे मानस को प्रतिध्वनित करती है । जैसे कोई व्यक्ति जंगल में जाकर आवाज़ लगाए तो उसकी आवाज़ प्रतिध्वनित होकर उसी पर बरसती है ऐसे ही मनुष्य का आइना उसका चिंतन-मनन है । इसलिए जो स्वयं को ऊंचा उठाना चाहता है उसे अपने सोच और चिंतन को ऊँचा उठाना होगा अस्वस्थ विचारों को लेकर जीवन, घर, परिवार और समाज को स्वस्थ नहीं किया जा सकता । स्वस्थ समाज की रचना के लिए स्वस्थ विचारों का स्वामी होना आवश्यक है ।
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दुनिया में विभिन्न प्रकार के मनुष्य हैं, लेकिन सभी के पास चिंतन- मनीषा नहीं होती। क्या वाज़िब है और क्या गैरवाज़िब, इसका निर्णय करने की विवेक भरी चेतना उनके पास नहीं होती । बुद्धि की सार्थकता किसी बिंदु पर विचार करने और समाधान पाने में ही है । अन्यथा पढ़ने-लिखने वाले भी अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करते हैं और अनपढ़ भी भूखे नहीं मरते । फिर भी बुद्धिमत्ता का मूल्य यही है कि व्यक्ति अपनी जीवनगत समस्याओं को सुलझाने के लिए इन समस्याओं पर थोड़ी देर सोचे-समझे। जिनके पास सोच नहीं उनके पास कोई समाधान भी नहीं । समाधान की आत्मा उसके पास है जिसके पास सोच के प्राण हैं । समाधान का महल उसके पास है जिसके पास सोचने की नींव है। जो व्यक्ति विचारने की क्षमता रखता है, वही अपने मस्तिष्क के विकास की भी क्षमता रखता है। दुनिया में मनुष्य ही वह प्राणी है जिसका मस्तिष्क विकसित है । अन्यथा जिनकी जैसी प्रकृति है, वैसा ही वे जी जाते हैं
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जब मैं चिंतन की, मनन की या विचार की बात कहता हूँ तो यह नहीं कहता कि आप बहुत बड़े विचारक, चिंतक या दार्शनिक ही बनें। विचारक तो सत्य पर केवल सतही विचार करके रह जाता है, सत्य को उपलब्ध नहीं हो पाता। बड़े-बड़े पंडित, प्रोफेसर विचारों को बहुत ही शानदार तरीके से अभिव्यक्त तो कर देंगे, लेकिन उनके जीवन में आचार और विचार के बीच एक विरोधाभास प्रतीत होगा। उनके मुंह से अगर लार भी टपक पड़े और
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