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विचारों की विपश्यना
[ संबोधि-ध्यान-शिविर, अजमेर; ८-६-९६, प्रवचन]
नुष्य के अन्तर्मन में सोच-विचार और चिंतन की अनवरत धारा चलती रहती है। कोई क्षण ऐसा नहीं होता जब वह विचारविहीन हो। वे धन्यभागी हैं जिनके विचार-विकल्प शांत हो चुके हैं, लेकिन हमारे अन्तस् में तो यह प्रवाह निरंतर जारी है। हमारे विचार तो नदी की धारा के समान सतत प्रवाहमान हैं। कभी-कभी हम किसी बिंदु-विशेष को केन्द्रित कर सोचते-विचारते हैं, कभी अनगढ़ विचार दौड़ते रहते हैं। विचार मनुष्य के व्यक्तित्व को भी प्रभावित करते हैं। जिसके जैसे विचार होते हैं, वैसा ही उसका व्यक्तित्व निर्मित होता है। विचारों का आंदोलन व्यक्तित्व का आंदोलन बन जाता है। विचारों की खिलावट जीवन की खिलावट बन जाती है । विचारों की गिरावट जीवन को नरक बना देती
है।
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