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________________ ३६ इक साधे सब सधे धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय । ओ रे मन तू रुक जा, इतनी जल्द मत कर । तू जितनी जल्दी करेगा उतनी ही देरी से पहुँचेगा। अभी तू बालक है अभी तुझे किसी की अंगुली थामने की जरूरत है । जिस दिन तुम्हें लगेगा कि तुम्हारे पाँव पूरी तरह मजबूत हो चुके हैं तुम खुद ही अपनी माँ की अंगुली छोड़ दोगे और दौड़ने लगोगे। और जब तक ऐसा न हो, बहुत ही धैर्यपूर्वक, चलते रहना है । अन्तर्विकास आकस्मिक घटना नहीं है; यह शनै: शनै: बीज से बरगद बनना है। अनुभूति स्वयं अनुभूतियों को बढ़ाती है। एक अनुभूति दूसरी अनुभूति का दरवाजा खटखटाती है। एक शक्ति दूसरी शक्ति को उद्दीप्त करती है। खुदाई शुरू की है तो खोदते-खोदते पानी भी निकलेगा। आपके स्पंदनों की अनुभूति अभी स्थूल है, इसीलिए प्रश्न उठ रहे हैं । चैतन्य-शक्ति के स्पंदन स्वयं समाधान होते हैं। उनके प्रति कभी संदेह-शंका, प्रश्न और प्रतिप्रश्न नहीं उठते । उनकी अनुभति विरल और स्पष्ट होती है। ध्यान के द्वारा हम भीतर प्रवेश करते हैं। हमारे कर्मों की कितनी निर्जरा होती है, मन कितना शान्त होता है, अपनी वृत्तियों के प्रति साक्षी और तटस्थ रह पाते हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि ध्यान का फूल कितना खिलेगा। शून्य आकाश घटित होने के बाद, चित्त की शून्य दशा उपलब्ध होने के पश्चात् जिस शक्ति का अनुभव होगा वही परम चैतन्य-शक्ति है। मन के शांत होने पर, मन के रिक्त हो जाने पर, मन के निरभ्र आकाश हो जाने पर स्वयं के भीतर जिस सत्ता का अनुभव होता है वह व्यक्ति स्वयं है। उसकी अपनी अस्मिता है, अपना अस्तित्व है, अपनी स्वसत्ता है, उसे चाहे जो नाम दो, परम चैतन्य या शक्ति या कुछ भी। प्रश्न का अगला चरण है; अनहद नाद की ओर कैसे बढ़ा जाए । नाद तो स्वयं फलित होता है । वह तो अस्तित्व से आई ध्वनि है। इसे प्राप्त करने के लिए हम अनुगूंज के रूप में प्रयोग कर रहे हैं । अनुगूंज का कार्य है कि वह अनहद नाद के मार्ग को खोले । जैसे बंद कक्ष में छेद कर दिया जाए तो सूर्य का प्रकाश स्वयं ही कक्ष में पहुँचेगा। अनुगूंज का कार्य भीतर में छिद्र करना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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