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________________ देह में देहातीत ३३ उनसे कुछ अलग हट गए, तुम्हारी दीवानगी कहीं और लिप्त हो गई। तभी तो मीरा को लोगों ने बावरी कहा, चैतन्य महाप्रभु दीवाने कहलाए। महावीर और बुद्ध भी जन-आलोचनाओं का शिकार बने । इन संसारियों की दृष्टि में तो वे पागल ही थे और आप अगर उन्हें समझदार कहते हैं तो जो काम उन्होंने किए आप भी करके दिखा दीजिए। एक काँटा निकालने के लिए दसरा काँटा सहयोगी होता है, लेकिन हम उन्हें संभालते नहीं हैं; आखिर फैंक ही देते हैं। आगे बढ़ें, खतरे की चिन्ता न करें। मैंने सुना है : एक व्यक्ति को पहाड़ के शिखर तक जाना था। गहन अंधकार था, पर उसके हाथ में लालटेन भी थी, जिसका प्रकाश दस फुट तक जाता था। उसने लालटेन उठाई, चला और ऊपर की ओर देखा, दूर-दूर तक गहरा अंधकार ! वह वहीं बैठ गया। उसके साथ एक मुसाफिर और था उसने पूछा 'भाई, रुक क्यों गए !' 'अरे देखते नहीं, कितना अंधेरा है, वहाँ तक कैसे पहुँचूँगा।' ‘पर तुम्हारे पास तो लालटेन है ।' 'है तो सही लेकिन इसका प्रकाश तो दस फीट तक ही जाता है।' 'मूर्ख कहीं के ! जब तुम दस फीट चलोगे तो प्रकाश और आगे दस फीट तक चला जाएगा।' जैसे-जैसे डूबोगे डूबने के खतरे कम होते जाएंगे, तैरना स्वयं ही आता जाएगा। श्वास-प्रक्रिया के अन्तर्गत जब ध्यान अन्तर्मुखी होता है तो आकाश और धीमी छाया के योग से एक विराट छाया दिखाई देती है जो प्राय: मेरे कार्यक्रम के साथ-साथ चलती रहती है। वह अन्तर्मन में ऐसे प्रकट होती है जैसे मेरी ही छोटी तस्वीर अति विराट कर मेरे सामने प्रस्तुत कर दे। श्वास-प्रक्रिया जैसे-जैसे सूक्ष्म होकर अन्तर्मुखी होती है व्यक्ति का स्थूल शरीर से संबंध शिथिल हो जाता है और सूक्ष्म शरीर से संबंध निर्मित हो जाता है। सूक्ष्म शरीर से संबंध होने पर ही वह स्वरूप उभरता है जो वास्तव में है। प्राय: ऐसा होता है कि मनुष्य को अपना विराट स्वरूप ही बूंद की भाँति दिखाई देता है और कभी बूंद जैसा रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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