________________
३२
स्वयं से क्या डरना । खुद से ही डर गए तो निर्भय किससे रहोगे ? स्वयं में उतरकर अगर खतरा लगता है कि कहीं भीतर ही खो गया तो, तो यह तुम्हारा परम सौभाग्य होगा कि ध्यान में मृत्यु का जीवन घटित हो गया। किसी ट्रक के नीचे कुचलकर जीवन मृत 'हो जाए इससे तो अच्छा ध्यान में उपलब्ध हो जाओ । करंट का झटका खाकर मृत्यु आए इससे तो समाधि-मरण अधिक श्रेयस्कर है । काँटों में मरना पड़े तो बेहतर है कि फूलों में मरा जाए ।
इक साधे सब सधे
अभी तुम असुरक्षित महसूस कर रहे हो, लेकिन असुरक्षा ही जीवन की सबसे बड़ी सुरक्षा है । असुरक्षा जीवन का स्वभाव है । तुम जहाँ-जहाँ सुरक्षा खोजने जाओगे, वहाँ असुरक्षा ही हाथ आएगी। अभी तुम भयभीत हो, इसलिए सुरक्षा खोजते हो । लेकिन सोचो जिन्हें तुमने सुरक्षा मान रखा है वहाँ भी तुम सुरक्षित हो ? फिर अपने में डूबने से भय कैसा ? जब तुम असुरक्षित होते हो, सम्पूर्ण अस्तित्व तुम्हारी सुरक्षा करता है । अपनी ओर से जो भी तुम बचाते हो, वह खो जाता है । और जो खो देते हो, अंतत: वही मिल जाता है । इसलिए एक बार खतरा उठा ही लो। आज की जो विक्षिप्तताएँ हैं वे समाप्त हो जाएंगी। आत्म-विश्वास और आत्म- गौरव आविष्कृत हो जाएंगे ।
तुम पूछते हो, 'कहीं विक्षिप्त न हो जाऊं ?' विक्षिप्त तो मनुष्य है ही । विक्षिप्तता की ही तो चिकित्सा करनी है । एक पागल इसलिए पागलपन के इलाज से बचना चाहता है कि कहीं वह पागल न हो जाए। यह क्या कम विक्षिप्तता है कि 'ध्यान में डूबा, कहीं डूबा ही रह गया तो । बाहर न आया तो ।' भगवान करे डुबकी गहरी लग ही जाए। गहरे पानी पैठ । गहरे पैठें, तो ही मोती मिलेंगे । बाहर की चिन्ता मत करो । बाहर तो तुम आओगे ही। ठीक वैसे ही जैसे तरणताल में कूदो, तो पानी से आखिर तो बाहर आओगे ही। पर यह बाहर आना, कुछ होकर आना हुआ। कुछ पाकर आना हुआ । 'जिन खोजा तिन पाइयां' जिसने खोजा, उसने पाया । जो डूबने से डर गया, वह लहरों को गिनता रहा ।
ध्यान तुम्हें समझ देता है कि तुम कितने विक्षिप्त हो । ध्यान से विक्षिप्तता नहीं आती । हाँ, कोई और तुम्हें पागल कह सकता है । क्योंकि तुम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org