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देह में देहातीत
[ संबोधि-ध्यान-शिविर, अजमेर, ७-६-९६, प्रश्न- समाधान ]
ध्यान के दौरान अनुभूति होती है कि डूबते समय कहीं ऐसा न हो कि बाहर ही न आएं, यह डर का भाव क्यों पनपता है अर्थात् कहीं विक्षिप्त अवस्था न हो जाए ।
प्रश्न पूछने वाले महानुभाव बहुत समझदार हैं । वे पहले ही सब कुछ तय कर लेना चाहते हैं। उन्हें डर है कि कहीं पागल न हो जाऊं, जो है उससे भी वंचित न हो जाऊं । पानी में उतरने से डरते हैं कि कहीं डूब ही न जाऊं इसलिए पहले तैरना सीखना चाहते हैं । अब पानी में उतरे बिना कोई तैरना कैसे सीख सकता है। बिस्तर पर तुम कितने ही हाथ-पाँव चला लो, कलाबाजियाँ खा लो पर तैरना तो पानी में ही हो सकता है । इसी तरह डरते रहे तो कुछ भी नहीं कर पाओगे। घर से बाहर निकला और मर गया तो ? दुकान खोली और घाटा लग गया तो ? इस तो का कहीं अंत नहीं होगा । सिर्फ इस 'तो' में जाकर ही कुछ पाया जा सकता है । डरो मत,
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