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________________ परिवर्तन की पुरवाई ३ करना सीखें। ध्यान के द्वारा जब स्वयं के पास आते हैं तो अपने से मैत्री होती है । स्वयं से एकसूत्रता होती है । वीणा के तार जुड़ते हैं। कभी तो इन तारों से झंकार आएगी ही। यहाँ हम जो ध्यान कर रहे हैं वह तो वीणा पर अंगुलियाँ जमाने की शुरुआत है। यहाँ तो तबले की थाप की तरह अंगुलियाँ चलानी सिखाई जा रही हैं। अभी तो प्रारम्भ करना है, फिर तो तबला तुम खुद बजाओगे, वीणा तुम खुद बजाओगे। मेरी आवश्यकता तभी तक है जब तक वीणा पर अंगुलियाँ सध न जाएँ । वीणा के बजते ही अंदर का शोरगुल कम होकर अन्तत: समाप्त हो जाएगा। फिर तुम शान्ति की सुवास में जीने लगोगे। मेरा मूल्य नहीं, मूल्य आपकी परम शान्ति का है, जिसे आपको उपलब्ध करना है। अन्यथा मनुष्य का मन अतृप्त है, असीम अतृप्त । मन का मौन होना ही ध्यान है । मन के कोलाहल को शान्त करने का जो प्रयत्न है, वही संबोधि-ध्यान है। मनुष्य के मन में अंधेरा है प्रकाश है, स्वर्ग है नरक है, गरीब है मिर्जा है। मन से ही बंधन है, मन से ही मुक्ति है। सबके आधार हमारे मन में ही समाए हुए हैं। अतृप्त मन की स्थिति ऐसी है जैसे नौका में छिद्र-ही-छिद्र हों। नौका पर चढ़ रहे हैं, पार उतरने की चेष्टा भी कर रहे हैं, पर छिद्र ! मन में भी यही चल रहा है उसने कभी शांत होना या टिकना सीखा नहीं है । शायद कभी सीखना भी चाहा हो पर हमने ही उसे अवसर नहीं दिया। कभी आर्तध्यान तो कभी रौद्रध्यान करता है तो कभी कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत, तेज तक पहुँचता है। पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा इन गुणस्थानों पर कितनी ही बार ऊंचा-नीचा होता है। न जाने कितनी बार ! भगवान तो कहते हैं राजर्षि प्रसन्नचन्द्र के मन की अवस्था यह कि दो मिनट में नरक का रास्ता देख लेते हैं और तुरन्त ही स्वर्ग का रास्ता भी नाप लेते हैं । साधना की अवस्था बनी हई है लेकिन मन की उठापटक के कारण प्रसन्नचन्द्र की नरक गति बननी शुरू हो जाती है, वही अगर सुधरती है तो स्वर्ग और निर्वाण ईजाद होने लगता है । कैवल्य की रोशनी झर पड़ती है। किसका मन क्या सोच रहा है, क्या कर रहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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