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परिवर्तन की पुरवाई
[ संबोधि-ध्यान-शिविर, अजमेर; ७-६-९६, प्रवचन]
यान की समस्त विधियों का सार है बाहर से भीतर मुड़ो, भीतर के शोरगुल को समाप्त करो और परम शान्ति में जीओ। बाहर से भीतर की ओर मुड़ना प्रतिक्रमण है, भीतर के शोरगुल को समाप्त करना जितेन्द्रियता है, परमशान्ति को जीना जीवन में मुक्ति का अवगाहन है। सामान्यत: मनुष्य जगत में ही अपने जीवन का प्रतिबिम्ब देखता है और जगत को ही जीवन के सुख-दुख का सूत्रधार समझता है। जब तक अपने जीवन के सूत्र को न समझ लिया जाए, तब तक जगत प्रकाशमय है और अन्तस्-केन्द्र अंधकारमय है। अपने जीवन का अवबोध हो जाए तो अन्तस् आलोकमय बन जाता है और जगत में अंधकार दिखाई देता है। बाहर से भीतर की ओर मुड़ना अन्तस् के लिए की जाने वाली शुभ व उज्ज्वल यात्रा है।
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