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________________ २० I प्रेमपूर्वक कर सकते हैं। कार्य के प्रति भावनात्मकता है तो शबरी के बेर भी राम की कृपा ले जाते हैं । शबरी का अहोभाव परमात्मा को पा लेता है तुम्हारी दृष्टि में फर्क है इसलिए तुम एक कार्य को उच्च और दूसरे को निम्न मानते हो | यह श्रेष्ठ वह हेय, तुम्हारी दृष्टि बताती है । सारा फेर तुम्हारी नज़रों का है। इक साधे सब सधे अभी यहाँ मुझे किसी साधक ने कहा कि वह सभी शिविरार्थियों के कमरों की सफाई करना चाहता है । एक ने जिम्मेदारी ली कि वह जितने भी मटके हैं उनमें पानी भरेगा। यहाँ 'दादावाड़ी' के कायाकल्प में समाज ने सहयोग किया। अब आप ही बताइए ये कार्य किस श्रेणी में आएंगे । छोटे-छोटे लगने वाले कार्य भी महान् हो गए। उनकी भावना पर भगवान का ग्रेस बरस सकता है, प्रभु का प्रसाद बरस सकता है । तुच्छ से तुच्छ कार्य भी तुम्हें महानता का परिणाम देकर जाएगा । मेरा तो यही निवेदन है कि हर कार्य प्रेम से करो । यह न सोचो कि हर कार्य का अलग-अलग परिणाम होता है । तुम नाना प्रकार का भोजन जीभ से स्वाद लेकर करते हो, पर परिणाम क्या होता है । खाते वक्त सोचते होगे कि सबके अलग-अलग परिणाम मिलेंगे, पर क्या ऐसा हो पाता है ? सभी का एक ही परिणाम, कैसे भेद करोगे ! भेद सिर्फ प्रारम्भ में दिखाई देते हैं, जैसे-जैसे पड़ाव पार करते हैं भेद की दीवारें गिरती जाती हैं। कार्यों में भेद हैं पर अन्तर्दृष्टि में भेद नहीं होना चाहिए । परिणाम में कोई भेद नहीं होगा । शिखर पर सब एक हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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