SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृत्य छोटे, प्रसाद अनुपम १७ अनायास-सहज ही हो जाएगा। __ध्यान की सिद्धि इस बात में है कि हमारा हर काम ध्यानपूर्वक सम्पन्न हो । यदि ध्यान जीवन की गतिविधियों के साथ बड़ी सहजता से तदाकार हो जाये तो ही ध्यान हमें सुख और रस दे पाएगा। ऐसे ही भक्ति है। भक्ति की सिद्धि इसी में है कि तुम अपना हर काम भक्तिपूर्वक करो । बगैर भक्ति-भाव के अगर तुमने सांस भी ले ली, तो वह सांस भी तुम्हारी सुषुप्ति में सहायक होगी। काम को भक्तिपूर्वक करो या ध्यानपूर्वक, जीवन को भक्तिपूर्वक जीओ या ध्यानपूर्वक, कोई विरोधाभास नहीं है । ध्यानपूर्वक और भक्तिपूर्वक दोनों को ही आत्मसात् किये हुए रहो तो भक्ति के कारण कर्म के प्रति आस्था रहेगी और ध्यान के कारण चूक होने की सम्भावना नहीं होगी। ध्यान हमें सिखाता है कि काम को एकाग्रता से करो जबकि भक्ति का पाठ यह है कि अपने काम को तन्मयता से पूरा करो। जहाँ एकाग्रता और तन्मयता दोनों की सहज साझेदारी है, दोनों की मंगल-मैत्री है, वह काम हमें सहज सुख देगा, रस देगा। बेहतर होगा एकाग्रता और तन्मयता से काम करते चले जाओ, ध्यान और भक्तिपूर्वक जीते चले जाओ, फल की इच्छा हो या न हो, फल सही ही होगा। हाँ, अगर क्रिया और विधि-विधान की दृष्टि से चर्चा करना चाहते हो तब तो ध्यान एक अलग मार्ग है और भक्ति एक अलग मार्ग। फिर तो जो दो घंटे बगैर पलक झपकाये पद्मासन में निश्चल होकर बैठ जाए, तुम उसको ध्यान कहोगे अथवा जो दो घंटे तबले की थाप पर भगवान के भजन गाता रहे तुम उसे भक्ति कहोगे। यह बहुत साधारण परिचय है, ध्यान और भक्ति का। मेरी समझ से तो हम दोनों ही धाराओं को, दोनों ही रसों को अपने अन्त:करण में एकरस होने दें, एकधार होने दें। ____ चाहे ध्यान हो, या भक्ति, आखिर दोनों का सम्बन्ध हमारे अन्तर्मन से है, अन्तर्हृदय से है। हिमालय से गंगा निकलती है और हिमालय से ही यमुना। दोनों ही धाराएँ अलग-अलग नाम से पुकारी जाती हैं, पानी के रंग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy