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करोगे तो अच्छा फल पाओगे । बुरा करोगे, बुरा नतीजा पाओगे | दुर्गति से स्वयं को बचाना है तो सम्यक् कर्मयोग करो, झूठ-प्रपंच से बचो, सहजता - सरलता से जीओ। क्रोध, वैर से परहेज़ रखो, आत्मीयता और प्रसन्नता को गले लगाओ। अपनी जरूरतों के लिए तो प्रबंध करो ही, औरों की जरूरतों को पूरा करने में अगर मदद कर सको तो बलिहारी । किसी का बुरा न करना दुर्गति से बचने का सबसे अच्छा सूत्र है । औरों का भला करो, सद्गति पाने का श्रेष्ठ मार्ग है । श्रेष्ठतम लोग श्रेष्ठ मार्ग से चलते है । हम सब भारतीय हैं, और भारतीय होने का अर्थ तुम ही नहीं, सारा संसार जानता है । भारतीय वह है जो अपनी आन-बान-शान के लिए मर मिटे । अगर तुम अपनी भारतीयता को अपने जीवन में सुरक्षित रख पाये तो तुम आज भी सद्गति में हो, बाद में भी तुम्हारे लिए सद्गति ही है - फिर चाहे सन्तान हो, या न हो ।
इक साधे सब सधे
महावीर ध्यान के मार्ग से परमपद को प्राप्त करते हैं और मीरा प्रेम के मार्ग से अपने प्रियतम को प्राप्त करती है । आप ध्यान पर जोर देते हैं, पर सामान्यतया जितना रस प्रेम और भक्ति में है उतना ध्यान में दिखाई नहीं देता है। जब सरस मार्ग से परम तत्त्व को पाया जा सकता है तो नीरस मार्ग का प्ररूपण क्यों ?
ध्यान और भक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सीधे तौर पर देखो तो ध्यान एक अलग धारा दिखाई देगी और भक्ति एक अलग धारा । लेकिन पैठ गहरी हो जाये तो दोनों में कोई दुराव नज़र नहीं आएगा । ध्यान जब अहोभाव की आनन्द - दशा बन जाता है तो ध्यान स्वत: ही भक्ति बन जाता है और भक्ति जब तन्मयता में अन्तरलीन हो जाती है तो वही ध्यान बन जाती है। ध्यान से भक्ति का जन्म हुआ है, वहीं भक्ति से ध्यान की सिद्धि हुई है । भक्ति हृदय की भावना है; ध्यान भावना का गहराई से स्पर्श है । हमें अगर भक्ति रास आती है तो हम भक्ति से अपना नाता रखें, ध्यान के राजमार्ग तक एक-न-एक दिन स्वतः पहुँच जाएंगे । ध्यान धरना अच्छा लगता है तो ध्यान को आत्मसात् कर लें । भक्ति का अंकुरण तो
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