________________
कृत्य छोटे, प्रसाद अनुपम
फिसल जाते हो ! शिविरों का आयोजन भी नियमितता लाने के लिए ही किया जाता है । फिर भी यह हमारी अभीप्सा पर, प्यास पर, तत्परता और तन्मयता पर निर्भर करेगा कि हम इन्हें सतत बनाए रखते हैं या नहीं। जिसने यह जाना कि इसके बिना मैं अपने अस्तित्व और अध्यात्म को नहीं जी सकता, अपनी शांति और सहिष्णुता को नहीं पा सकता, वह कभी इस मार्ग को नहीं छोड़ेगा | चाहे जैसी आपात स्थिति आ पड़े, वह इनके बिना नहीं रह सकेगा ।
आप जानते हैं कि भोजन - पानी के बिना आप जी न सकेंगे क्योंकि पेट की पीड़ा से परिचित हैं । इसी तरह जिस दिन आप अपनी अन्तर् आत्मा की पीड़ा से परिचित हो जाएंगे, तब आप अध्यात्म की साधना किए बिना जी न सकेंगे। संकल्प कीजिए । भीष्म ने प्रतिज्ञा की, निभाई, राम ने प्रतिज्ञा की, निभाई; लेकिन आपकी हालत तो यह है कि अभी आपने जो वचन बोले थोड़ी देर बाद भूल जाएंगे या बदल जाएंगे, मुकर जाएंगे। इसलिए मनोयोगपूर्वक संकल्प कीजिए कि मैं इस मार्ग पर चलूंगा । तब ये सब चीजें अपने आप परछाई बनकर चलेंगी। जीवन में प्रतिकूल और अनुकूल स्थितियाँ आने पर इनसे जो कारगर परिणाम देखने को मिलेंगे तब आप जानेंगे कि ध्यान जीवन की कसौटी है, ध्यान जीवन का सुख है, स्वरूप है, मौन है, शांति है, स्वास्थ्य है, आनन्द है
I
१३
ध्यान पर ध्यान दो, तो ध्यान सतत बना रहेगा । ध्यान में सातत्य रहेगा। अच्छा होगा, अपना ध्येय, अपना लक्ष्य सदा स्मरण रखो । ध्येय स्पष्ट है, तो ध्यान स्पष्ट और सदैव रहेगा। छिन छिन में उसकी सदैवता रहेगी । मनुष्य जब भी चूका है, तो अपने लक्ष्य से चूका है । लक्ष्य के प्रति सुदृढ़ हो, प्रयत्नशील हो, तो मार्ग कभी छूट नहीं सकता। तुम ध्यान के प्रति तो आकर्षित हो, पर ध्येय के प्रति आकर्षित नहीं हो। यह बोध सदा रखो कि जब तक ध्येय उपलब्ध नहीं होगा, राह पर चलना बरकरार रखेंगे । यहाँ से घर चले जाओ, तब भी, घर को ही ध्यान शिविर समझना । मुझसे विलग हो जाओ, तब भी, अपने लक्ष्य को अपना गुरु मानना, मार्गदर्शक मानना । आत्मा की अन्तर्ध्वनि तुम्हें सदा संबोधित करती रहेगी, उस पर ध्यान देना, ध्यान पर ध्यान देना, ध्यान तुम्हारा आभामंडल बन जाएगा । चेतना का ध्यान रखना ही, ध्यान की चेतना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org