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इक साधे सब सधे
नहीं सोचता कि दमन करने से कोई क्रोध-मुक्त हो सकता है। हाँ, यह भी ध्यान रहे कि प्रगट करके भी आज तक तुम क्रोध से मुक्त नहीं हो सके हो। क्रोध की अभिव्यक्ति और दमन दोनों ही घातक हैं। यदि तुम दबाते ही रहे तो स्प्रिंग वाली स्थिति पैदा हो जाएगी। दूने वेग से बाहर आएगा। हर समय तुम तनाव से घिरे रहोगे और हर वक्त क्रोध ही बाहर आता रहेगा। फिर समाधान
क्या?
जब भी ऐसी स्थिति सामने आए हमारा वहाँ से हट जाना ही बेहतर है । क्रोध आने की स्थिति में साक्षी-भाव प्रकट करो। अपने क्रोध के साक्षी हो जाओ और अपनी श्वासों पर नियंत्रण रखो। आप जानते ही होंगे कि आवेश में श्वासों की गति बढ़ जाती है। इसलिए अपना ध्यान सांसों पर केन्द्रित करो । सांस मध्यम गति से, मंद गति से चले । दूसरों की बातों को तटस्थता से सुनो और किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त मत करो, बस शान्त रहो । यह सब एकदम नहीं होगा, धैर्य रखना होगा और संकल्प करना होगा कि तुम प्रतिक्रिया नहीं करोगे, प्रत्युत्तर नहीं दोगे। जब उत्तर ही नहीं होगा तो कब तक अंगारे बरसेंगे। फिर तुम्हें प्रेम करना होगा क्रोधी के प्रति । अपने क्रोध को करुणा और प्रेम में परिवर्तित करना होगा। तुम जिस वातावरण में रहते हो उसमें तुम्हें निखार लाना है। अपने आसपास प्रेम का इतना विस्तार करो कि क्रोध के निमित्त परास्त हो जाएं । स्वयं से गलती हो तो क्षमा माँग लो, दूसरे से गलती हो जाए तो उसे क्षमा कर दो। आग भड़के उससे पहले ही बुझा दो तो समाधान तुम्हारे हाथ है अन्यथा....... !
ध्यान, स्वाध्याय, प्राणायाम, योगाभ्यास आदि शिविर के अतिरिक्त दैनिक जीवन में भी सुचारू रूप से चलें, इसके लिए मार्गदर्शन करें।
जो तुम पूछ रहे हो ये तो स्वत: चलते हैं; तुम ही अपना मन कमजोर कर लेते हो। इनका उद्देश्य ही तुम्हारे जीवन में शांति, शुद्धि और पवित्रता लाना है पर क्या करें तुम ही विचलन की काई पर
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