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कृत्य छोटे, प्रसाद अनुपम
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[ संबोधि-ध्यान-शिविर, अजमेर; ६-६-९६, प्रश्न-समाधान]
. हम चाहते हुए भी क्रोध को क्यों नहीं रोक पाते?
क्रोध मनुष्य की उत्तेजना है। मनुष्य की शक्ति जब उत्तेजित होती है तब वह दो रूप में प्रगट होती है - एक काम, दूसरा क्रोध । शक्ति का संबंध मन के साथ होने पर काम का रूप लेती है और व्यवहार के साथ होने पर क्रोध का। ये दोनों ही मनुष्य की घातक बीमारियाँ हैं। मनुष्य स्वयं को दुनिया और परिवेश से मुक्त नहीं रख पाता, इनके प्रति तटस्थ नहीं हो पाता इसलिए क्रोध से भी नहीं बच पाता। मनुष्य अपने देहभाव से नहीं छूटता इसलिए कभी काम से भी मुक्त नहीं हो पाता। जब तक शरीर और मन के धर्म सक्रिय रहेंगे, काम-क्रोध मनुष्य के सहचर बने रहेंगे।
क्रोध पर संयम बरतिये। अगर आप क्रोध से मुक्त होना चाहते हैं, तो उसे दबाएँ नहीं । दमन से नहीं, संवर से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है । मैं
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