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________________ इक साधे सब सधे पाएगी। इसलिए सींचो, हमारा काम केवल सींचना है परिणाम की फिक्र किए बिना । क्योंकि अपने आप में उतरकर, स्वयं में खोकर हम कहीं नहीं भटके। अगर कुछ भी न मिल पाए तब भी यह भटकाव नहीं होगा, क्योंकि भटके हैं तो खुद में, दुनियादारी में नहीं । पाएंगे तो भी स्वयं को और खोएंगे तो भी खुद को ही। कल मुझे सुनने को मिला कि जो भी करना है इसी जन्म में कर गुजरूं । बहुत पते की बात है। पता नहीं दस-बीस जन्म हैं भी या नहीं, पर यह जन्म ! यह जन्म तो तुम्हारे ही हाथ में है । इस जन्म को ही एक पूर्वजन्म मान लो तो शायद फूल तक की यात्रा हो जाए । प्रारम्भ तो किया ही जा सकता है। अगर पूर्ण न हो पाए तो भी कुछ ग़म नहीं । हमें तो पुरुषार्थ करना है, बीज का सिंचन करना है; फूल का खिलना नियति पर निर्भर है । हाँ, सिंचन में कमी नहीं आनी चाहिए। ध्यान का पहला चरण है स्वयं की तलाश । तुम दुनियाभर में ढूंढ आओ लेकिन जो चीज तुम्हारे ही भीतर है वह बाहर कैसे मिल सकती है। जो है, तुम्हारे पास है। कबीर कहते हैं 'मैं तो तेरे पास में बन्दे' - वह सदा तुम्हारे ही पास है । 'मैं तो तेरे पास में ! ना मैं भेड़ी, ना मैं बकरी ना छरी गंडास में, मैं तो तेरे पास में' – मैं किसी भेड़ या बकरी में नहीं हूँ कि तुम मुझे परमात्मा के सामने ले जाकर बलि चढ़ाओ, न ही किसी छुरी या सरोते के अंदर हूँ । 'मैं तो रहों सहर के बाहर मेरी पुरी मवास में, खोजी हों तो तुरतै मिलिहों पल भर की तलास में, बन्दे मैं तो तेरे पास में।' मैं शहर के बाहर अर्थात् शरीर के भीतर रहता हूँ । मेरा घर, मेरा गढ़ शरीर के भीतर है। अगर खोजने वाला हो तो पलभर की तलाश में मिल जाएगा। तुम्हारे पर्स में अगर सामान है तो मिलेगा ही। अगर नहीं मिल रहा तो इसलिए कि जिस जेब में मूल अस्तित्व है, मूल सम्पदा है वहाँ हमारा हाथ नहीं पहुंच पा रहा । इसलिए आदमी भटका हुआ आदमी ने वक्त को ललकारा है, आदमी ने मौत को भी मारा है । जीते हैं आदमी ने सारे लोक, आदमी खुद से मगर हारा है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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