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________________ ध्यान और हम प्रायोगिक रूप और लक्षण है । ध्यान का पहला सूत्र यह है कि जीवन की सभी संभावनाएँ हमसे स्वयं से जुड़ी हैं। अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की संभावनाएँ हमसे ही जुड़ी हैं। अच्छे और बुरे विचारों का जन्मदाता स्वयं मनुष्य ही है। इसलिए जब ध्यान के मध्य हम अन्तर्मंथन करते हैं तब यह वस्तुत: भीतर के सागर का ही मंथन है । जिसमें ज़हर और अमृत दोनों निकलेंगे। अंधकार भी दिखाई देगा और प्रकाश भी। पहले चरण में अंधकार है दूसरे चरण में प्रकाश। कभी पहले प्रकाश दिखाई दे जाता है, फिर अंधकार नज़र आने लगता है। जो भी दिखे वह हमारा अपना होगा। ध्यान के मध्य उठने वाला मानसिक कोलाहल, शोरगुल किसी अन्य का नहीं, हमारा अपना है । ध्यान में ही हम पहचान पाते हैं कि हमारे अंदर कितना कोलाहल है । बाह्य-प्रदूषण से हमारे अंतस् में अधिक प्रदूषण है। विचारों की तरंगों का कोलाहल हमारे मनोमस्तिष्क को निरन्तर प्रदूषित किए हुए है। जरा अपने इस प्रदूषण को पहचानो तो सही । आत्मा और परमात्मा की भक्ति बाद में करेंगे, जाप और माला का स्मरण बाद में करना, पहले उस शोरगुल को तो समझें । भागने से कुछ न होगा। अगर ध्यान में बैठे और मन अधिक चलायमान हो जाए तो यह न सोचो कि छोडो इस ध्यान-व्यान को, इससे तो पहले ही ठीक थे। कब तक बचे रहोगे, कब तक हम अपने आप से पलायन करते रहेंगे। प्रकृति में तो घटित होती है, पर एक पल में कोई वस्तु घटित नहीं होती है। अगर सोचें कि आज घी पी लूं और कल पहलवान हो जाऊँ तो यह संभव नहीं है। आज बीज बोएं और कल फूल चाहें तो यह संभव नहीं है । होगा, सब कुछ होगा, धीरे-धीरे अभ्यास से। संबोधि-ध्यान की विधि भीतर होने का अभ्यास है जहाँ जाकर व्यक्ति अपने चैतन्य-बीज को सिंचित कर सके। फूल खिलाने नहीं पड़ते, स्वयं खिलते हैं । सौरभ कहीं से लानी नहीं होती, फूल खिलते ही सौरभ स्वत: बिखरने लगती है। फूल तब ही खिलता है जब बीज का सिंचन होगा। पहले तो तुम सींचने से ही कतराते हो और सिंचन करने भी लगो तब न जाने कौन-का-सी बाधाएँ खड़ी हो जाएँ और तुम्हें सींचने से रोक लें। और सिंचन में चूक हो गई तो पौधा फिर कुम्हला जाएगा। फूल तक की यात्रा न हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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