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इक साधे सब सधे
करुणा मेरा धर्म है. जीसस ने प्रेम को ही धर्म स्वीकारा, लेकिन मेरा कहना है कि जब तक ध्यान के द्वारा स्वयं को न जाना तब तक दूसरों पर करुणा कैसे कर पाएंगे, दूसरों से प्रेम कैसे कर पाएंगे, दूसरे के प्रति अहिंसा का भाव कैसे होगा। हाँ, जब तक स्वार्थ है तब तक प्रेम बना रहेगा, दूसरों में अपनी प्रतिष्ठा करवानी हो तो करुणा भी चलती रहेगी, प्रतिष्ठा के लिए तो दान की प्रवृत्ति भी रहेगी । पर जीवन में पहली बार अहिंसा तब घटित होगी जब व्यक्ति स्वयं के प्रति भी हिंसा नहीं करूंगा, यह संकल्प स्वीकार कर लेता है। स्वयं को जानकर ही व्यक्ति दूसरों का वध नहीं करेगा। अभी तक तुम्हारी धारणा है कि चींटी को मारने से पाप लगता है इसलिए व्यक्ति चींटी को नहीं मारता और जब तुम स्वयं को जान लेते हो, समझ लेते हो तो चींटी पर पाँव रखने से इसलिए परहेज करोगे कि चींटी पर पाँव रखना स्वयं पर ही पाँव रखना है। चींटी को बचाकर व्यक्ति खुद को भी बचा रहा है। हम चींटी पर पाँव रखेंगे तो चींटी भी हम पर पाँव रखेगी। तुम सोचोगे चींटी हम पर पाँव रख भी देगी तो क्या होगा। इतना बड़ा शरीर है क्या बिगाड़ लेगी चींटी । एक बार ऐसा ही हुआ मैंने हाथी से कहा तेरे ऊपर चींटी चढ़ भी जाए तो क्या होगा। हाथी बोला, यह बात किसी से कह मत देना। हाथी डरा क्योंकि चींटी जब अपना रूप धारण कर ले, उसके सूंड में या कान के बिल में घुस जाएं तो हाथी भी परास्त हो जाता है, उन्मत्त और पागल हो जाता है । आत्महत्या करनी पड़ती है उसे, और मैं नहीं चाहता कि आपको आत्महत्या करनी पड़े। मुझे आपसे प्रेम है । सारी मनुष्यता से प्रेम है । मनुष्य मेरे लिए मंदिर है, परमात्मा का घर है । मैं आपकी सुरक्षा और समृद्धि चाहता हूँ।
___ ध्यान मनुष्य के लिए, उसके अपने विकास के लिए है, अपने अन्तर्हदय के दरवाजों को खोलने के लिए है। अगर कोई जानना चाहे कि ध्यान से क्या मिलेगा, साधना के क्या परिणाम होंगे, ध्यान के द्वारा मनुष्य क्या बन सकता है, तो एक वाक्य में कहूँगा कि ध्यान हमें ऋजु-प्राज्ञ बनाता है। ऋजुता का अर्थ है सरलता। और मस्तिष्क के अन्तस्तलों में छिपे रहस्यों को उद्घाटित करने की कला ही प्रज्ञा है । हृदय से व्यक्ति को सरल बनाना और मस्तिष्क से मेधावी बनाना यानी ऋजुप्राज्ञ बनाना। यह ध्यान का सबसे बड़ा
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