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ध्यानयोग-विधि-१
१२३ बिना ओम् को साथ लिए न आए, न जाए। लगभग पाँच मिनट तक ओम् की मंद साँस के साथ सहयात्रा जारी रहे । सहयात्रा का प्रथम भाग इस तरह संपन्न हुआ। अब साँसों की मंदगति बरकरार रखते हुए साँसों की गहराई बढ़ाएँ । साँसों के स्पन्दन ठेठ नाभि के नीचे तक भी अनुभव करें और ओम् को इस गहराई में उतारें । गहरी दीर्घ साँसों के साथ ओम् का गहरा स्मरण लगातार पाँच मिनट तक जारी रहे।
इस चरण में ओम् अवचेतन मन में स्वत: उतरने लगता है एवं शरीर के विभिन्न चेतना-केन्द्र सक्रिय निर्मल होते हैं। चतुर्थ चरण : अन्तर-मंथन
अब श्वास-प्रश्वास को तीव्रता प्रदान करें। धीरे-धीरे साँसों की गति बढ़ाएँ और प्रत्येक साँस के साथ ओम् का गहन स्मरण करें। साँसों की गति निरन्तर बढ़ाते चले जाएँ और उतनी ही तीव्र गति से ओम् की आवृत्ति भी । ओम् और साँस, साँस और ओम् । अपने एक-एक अणु, एक-एक रोम, एक-एक स्नायु को साँसों के द्वारा ओम् की चेतना से जाग्रत करें । अनुभव करें, मानस में इस दृश्य को साकार करें कि हमारा कण-कण शुभ्र प्रकाश से चमकने लगा है और हमारे अन्तर्मन के कषाय और विकार साँस के माध्यम से तीव्र गति से बाहर फैंके जा रहे हैं। तीव्र श्वास-प्रश्वास के साथ ओम् के स्मरण को अधिकतम तीन मिनट तक जारी रखें।
तृतीय चरण में ओम् अवचेतन मन की गहराई में उतरता है, जबकि चतुर्थ चरण में यह अवचेतन मन को भी शान्त कर साधक को चैतन्य से भर देता है । तन-मन ऊर्जस्वित हो जाता है।
पंचम चरण : चैतन्य-बोध
श्वास को तीव्रतापूर्वक छोड़कर स्वयं को रिक्त कर लें और अन्तर् के शून्य में डूब जाएँ। विश्राम, परम मौन ! इस चरण में कोई क्रिया-प्रतिक्रिया, प्रयास नहीं करना है। केवल साक्षी होकर देखना है। संसार से, समाज से, परिवार से, चित्त से, कषायों से भिन्न अपने चैतन्य को देखें, अनुभव करें। स्वयं में ऊर्जा-जागरण और विद्युत
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