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________________ १२२ इक साधे सब सधे अनुगूंज भी पहले पाँच बार सामान्य स्वर में और अंत में दो बार उच्च एवं तीव्र स्वर में संपन्न कर एकदम मौन, शांत हो जाएँ। अभी कुछ समय तक ध्वनि के प्रकंपन अनुभव होंगे। अपनी सजगता को पूरी तरह अनुगूंज के प्रकंपनों पर केन्द्रित करें। नाद की परा-तरंगें जब शरीर की प्रतिरोधिगामिनी तरंगों से एकलय होती हैं, तो शरीर में शांति प्रकट होने लगती है, यही प्रथम चरण की पृष्ठ भूमि है । द्वितीय चरण : सहज स्मृति इस चरण में अंदर-ही-अंदर ओम् का मानसिक जाप करते हैं । जाप में निरन्तरता और लयबद्धता होनी चाहिए, अत: ओम् में स्मरण को सहज साँस के साथ जोड़ें। एक साँस में एक बार ओम् का मानसिक जाप करें। ओम् को ही अपने चिंतन का केन्द्र बनाएँ। कोई शारीरिक संवेदना, मानसिक विकल्प, विचार उभरें, तो उन पर ध्यान न दें, न ही उन्हें उठने से रोकें । उन्हें अपना काम करने दें पर स्वयं को उनसे पृथक अनुभव करते हुए केवल ओम् पर चित्त को एकाग्र करें । दस मिनट तक इसी तरह एकाग्रचित्त होकर प्रत्येक सहज साँस के साथ निरन्तर ओम् का स्मरण पूरी समग्रता और गहराई से जारी रखें । भृकुटि मध्य पर प्रकाशमय उज्ज्वल ओम् की आकृति देखें । मस्तिष्क को ओम् की आवृत्तियों से भर जाने दें। इस द्वितीय चरण में मन का कोलाहल शांत होना शुरू होता है और साधक के लिए आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का निर्माण होता है। तृतीय चरण : अन्तर्यात्रा तृतीय चरण में ओम् के स्मरण के साथ श्वास की गति मंद से मंदतर करनी है। साँस धीमी हो और सहयात्री हो ओम् । इस चरण में अन्तर्मन के साथ ओम् की सहयात्रा होती है। द्वितीय चरण की तरह एक साँस के साथ एक ओम् की आवृत्ति जारी रहे, लेकिन अब सहज सांस के स्थान पर मंद साँस हो अर्थात् साँस की गति कम होती जाए। प्रत्येक साँस पर ओम् पूरी तरह फैला हुआ हो । एक भी साँस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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