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________________ ध्यानयोग-विधि-१ १२१ धम्मं सरणं पवज्जामि। अप्पं सरणं पवज्जामि ॥* प्रथम चरण : ओंकारनाद गहरी साँस भरें । नाभि पर ध्यान केन्द्रित कर ओम् का उच्चार करें । एक बार उद्घोष, फिर तीन बार सहज साँस, फिर उद्घोष । ओंकारनाद की प्रक्रिया में ध्यान नाभि/शक्ति-केन्द्र से प्रारंभ होकर ऊपर उठता हुआ क्रमश: हृदय, कंठ, नासिका मूल, भृकुटि , ललाट से गुजरता हुआ शिखा/सहस्रार तक जाए। प्रत्येक स्तर पर ओंकार ध्वनि के वर्तुल प्रकंपनों को अनुभव करने का प्रयास करें । नाभि, हृदय, कंठ, कान एवं कपाल पर ओम् की अनुगूंज को सुनने का प्रयास करें। निरन्तर अभ्यास से जैसे-जैसे इंद्रियाँ अंतर्मुखी होने लगती हैं, प्रकम्पनों की सूक्ष्म संवेदनाओं को ग्रहण करने की क्षमता विकसित हो जाती है। नाद के प्रति अपनी सजगता बनाए रखें । नाभि, हृदय और कंठ से गुजरते हए 'ओ' एवं भृकुटि-मध्य, ललाट और कपाल पर 'म्' का नाद होना चाहिए। अपने होश को पूरी तरह नाद के साथ जोड़ने पर ही यह संभव होगा। इसलिए पूर्ण सजगता, जागरूकता अत्यंत आवश्यक है। इस तरह साँस भरते-छोड़ते हुए पाँच बार सस्वर ओंकारनाद करें। शनै:-शनै: ओंकारनाद को यथासंभव अधिक-से-अधिक लंबा और गहरा करने का प्रयास करें । पाँच बार इस रीति से ओंकारनाद संपन्न होने पर दो बार उच्च स्वर में ओंकार का उद्घोष करें। ओम् की पराध्वनि और उसके प्रकंपनों के प्रति अपनी सजगता और बढ़ाएँ । इस तरह ओंकार का पाँच बार सामान्य और दो बार तीव्र स्वर से उद्घोष करने के उपरान्त ओम् की अनुगूंज प्रारंभ करें। अनुगूंज ओंकारनाद का दूसरा चरण है । होंठ बन्द हों । जीभ अचल हो । केवल अंदर-ही-अंदर ओम् का गुंजारण करें। इस अनुगूंज को नासामूल/भृकृटि मध्य पर अनुभव करें और चेतना की गहराई में उतरने दें। बाहर की किसी भी ध्वनि पर ध्यान न दें, केवल अनुगूंज पर ही अपनी पूरी चेतना केन्द्रित करें। * भावार्थ : अरिहंत, सिद्ध, साधु, धर्म और आत्मा की शरण स्वीकार करता हूँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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