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________________ ११० इक साधे सब सधे सबह-शाम दोनों समय लगभग एक घंटे एक ही आसन में तनाव-रहित स्थिरतापूर्वक बैठने की क्षमता साधक में होनी वांछित है । यह तभी संभव है जब हमारे शरीर के अंग-प्रत्यंग में पर्याप्त लोच हो, कोई जकड़न न हो, स्नायविक शांति हो और शरीर के जोड़ों तथा नस-नाड़ियों में दूषित वायु आदि का अन्य विकार अवरुद्ध न हो । प्राणवायु के आगमन, दूषित वायु के निर्गमन एवं रक्त-संचार में कोई बाधा न हो, क्योंकि ये ही हमारे संजीवनी-शक्ति के संचार के माध्यम हैं। अत: ध्यान से पहले सुबह थोड़ा योगाभ्यास करना लाभदायक है। योगाभ्यास को हम निम्न पाँच चरणों में पूरा करेंगे - १. संधि-संचालन ३ मिनट २. स्थिर दौड़ २ मिनट ३. योगासन ३ मिनट ४. योगचक्र ४ मिनट ५. शवासन ३ मिनट १. संधि-संचालन शरीर में मुख्य रूप से गर्दन, कंधे, कोहनी, कलाई, कमर, घुटने, टखने, अंगुलियों के जोड़ -ये संधि-स्थल हैं। दैनंदिन क्रिया-कलापों में इन संधि-स्थलों के अनियमित उपयोग के कारण इनमें जकड़न पैदा हो जाती है, जो शारीरिक स्थिरता और स्वस्थता में बाधक है। इन संधि-स्थलों के मुक्त संचालन के लिए हम निम्न व्यायाम करें (क) पद-संधि संचालन : नीचे बैठ जाएँ। दोनों पैरों को सामने की तरफ फैला लें। हाथों को घुटनों पर रखें। रीढ़ की हड्डी और गर्दन सीधी हो । पैर के पंजों को मिलाकर तीन-तीन बार आगे-पीछे झुकाएँ । तत्पश्चात् दोनों पंजों को तीन बार दाहिनी ओर से बायीं ओर तथा तीन बार बायीं ओर से दाहिनी ओर गोल घुमाएँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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