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ध्यानयोग-विधि-१
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(ख) हस्त-संधि संचालन : हाथों को जमीन के समानान्तर सामने की तरफ फैलाएँ। हथेलियों और अंगुलियों को पूरा खोलें। अब अंगुलियों के प्रत्येक जोड़ पर जोर डालते हुए , मुट्ठियाँ कसते हुए सीने की तरफ ले जाएँ। मुट्ठियाँ खोलते हुए पुन: हाथ फैलाएँ । तीन-तीन बार इस क्रिया को दोहराएँ।
हाथों को पूर्ववत् फैला रहने दें । मुट्ठियाँ बंद करें । कलाई के जोड़ों को धीरे-धीरे गोल घुमाएँ । तीन बार दाहिनी तरफ से, तीन बार बायीं तरफ से । ध्यान रहे, हाथ सीधे रहें।
(ग) स्कंध-संचालन : हाथों को कोहनी से मोड़कर अंगुलियों की अंजलि-सी बनाकर कंधों पर रखें और कोहनियों के साथ कंधों के जोड़ों को तीन बार आगे से पीछे की ओर तथा तीन बार पीछे से आगे की ओर गोलाकार घुमाएँ । ध्यान रहे कि इस पूरी प्रक्रिया में अंगुलियाँ कंधों पर रखी रहें ।
(घ) गर्दन-संचालन : गर्दन-संचालन क्रिया के तीन चरण हैं :- पहले चरण में साँस भरें, गर्दन को सामने की तरफ झुकाकर ठुड्डी को कंठ-कूप से लगाने का प्रयास करें । फिर धीरे-धीरे साँस छोड़ते हुए गर्दन पीछे की तरफ ले जाएँ और सिर का पिछला हिस्सा पीठ से लगाने का प्रयास करें। तीन बार आगे-पीछे इस क्रिया को दोहराएँ।
द्वितीय चरण में गर्दन को बारी-बारी से तीन-तीन बार दायें-बायें घुमाएँ।
तृतीय चरण में गर्दन को पूरा गोल घुमाएँ । तीन बार दाहिनी तरफ से घुमाने के उपरांत तीन बार बायीं तरफ से इसी तरह गोल घुमाएँ।
इस क्रिया को सावधानीपूर्वक धीरे-धीरे करें। गर्दन में कोई झटका/जर्क न आने पाए।
(ड) कटि-संधि संचालन : यह कमर एवं रीढ़ का व्यायाम है । खड़े हो जाएँ। इसे दो चरणों में पूरा किया जाता है। पहले चरण में पैरों को परस्पर
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