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________________ १०२ इक साधे सब सधे रूप है । संस्कार की धारा जैसी होगी, स्वभाव उसी रूप में व्यक्त हो जाएगा। जानवरों का स्वभाव फिर भी निर्धारित होता है, पर आदमी अपने-आपको जैसा बनाना चाहे, वैसा बना सकता है। वह चाहे, और प्रयास करे तो अपने बुरे स्वभाव को बदल सकता है । ध्यान स्वभावगत परिवर्तन के लिए एक बेहतरीन औषधि है। ध्यान का पहला काम है बुरे स्वभाव से अच्छे स्वभाव में बदलना और दूसरा काम है व्यक्ति को स्वभाव से ही मुक्त कर देना। स्वभाव यानी आदत । आदतें चाहे अच्छी ही क्यों न हों, आदत तो आदत ही है। आदत से ही मुक्ति चाहिये। ध्यान तो तुम्हें सहजता देता है। सहजता और सजगता ही ध्यान के आधार हैं। ध्यान तो फूल की तरह खिलता है । फूल से सुवास प्रगट होती है । फूल सुवास देने के लिए नहीं खिला है। वह खिला है और उससे सुवास फैल रही है, यह उसकी सहजता है। और फिर, किसी के द्वारा बरती जाने वाली रुक्षता के कारण तुम उसके ध्यानी होने पर संदेह नहीं कर सकते। उसकी रुक्षता का कारण ध्यान नहीं, वरन् कुछ और है। हो सकता है वह अपने लिए एकान्त की भूमि बनाये रखने के लिए औरों को अपने से न जोड़ रहा हो। मानवता का रूप काफी विकृत हुआ है । व्यक्ति अगर अपने प्रति जागरूक न रहे, तो यह दुनिया उसके जीवन-धन को लूट ही ले जाए। सम्भव है, ऐसी कोई घटना घट गयी हो कि आदमी सतर्कता के लिए भी ऐसा व्यवहार कर सकता है। साधक शान्ति में जीता है। चूँकि उसमें शांति के स्वर पूरी तरह मुखरित नहीं हुए हैं, इसलिए वह बाहर का वातावरण शान्त-सौम्य चाहता है। वह तुम्हारे असद्-व्यवहार को सह जाएगा, तुम्हारी ओर से निर्मित की जा रही अशान्ति और प्रतिकूल परिस्थितियों को भी सह जाएगा, किन्तु जब उसे अपनी शांति पर, आत्म-गौरव पर कुठाराघात होता नजर आएगा, तो वह स्पष्ट शब्दों में तुम्हें बोल सकता है। उसका ऐसा बोलना किसी को क्रोध या रूक्षता लग सकता है, पर वह अव्यवस्था, प्रतिस्पर्धा और फिजूल की उठापटक को पसंद नहीं करेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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