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________________ इक साधे सब सधे तरुवर फले' – यथासमय सब फलित होता है। शक्तिपात का प्रभाव, सदा बना हुआ रहता है। तुम अगर मार्ग से च्युत भी हो गए, तब भी प्रदत्त और प्राप्त शक्ति तुम्हें प्रेरित और आन्दोलित करती रहेगी। भले ही भ्रष्ट भी क्यों न हो जाओ, पर जिस श्रद्धा ने तुम्हें ऊँचाई के धरातल पर खड़ा किया था, वह तुम्हें वापस सम्हाल लेगी। तुमने सहजता को असहजता से लिया, इसलिए ऐसा हुआ। 'शक्ति' से तुम विमुख हुए। तुम पूछते हो, “शक्तिपात में हमारी रुचि क्यों रहती है ?" इसलिए कि 'हम चट मँगनी पट शादी' की नीति में विश्वास रखते हैं। समय और श्रम होता नहीं, झट परिणाम चाहते हैं । हम कर्त्तव्यमुखी नहीं, परिणाम को पाने के प्रति जल्दबाजी रखते हैं । “क्या ग्रेस पर्याप्त नहीं।"ग्रेस पर्याप्त है, ग्रेस हमारी श्रद्धा का, भावना का परिणाम है । ग्रेस तो बरस रहा है, हम ही ठंडे हैं तो क्या किया जाये। हम बुद्धि में उलझे हैं, तर्क-वितर्क में घुट रहे हैं, तो ग्रेस कैसे ग्रहण हो। ग्रेस बरसता है उन पर जो हृदय के स्वामी हुए। हृदयवान् प्रसाद-भाव में ही जीता है । ग्रेस बरसा यानी तुम डूबे । तुम नृत्यमय हो उठे। तुम निमज्जित हुए। बूंद सागर में समा गयी। ग्रेस पर्याप्त है, प्रसाद पूर्ण है। ग्रेस बरस रहा है, तुम ग्रहण करो । तुम्हारी खुमारी, तुम्हारी डुबकी ही ग्रेस को ग्रहण कर सकती है। प्रसाद कभी भी घटित हो सकता है, स्नान करते वक्त भी, सब्जी सुधारते वक्त भी, भोजन करते वक्त भी, गीत गाते हुए भी, संगीत सुनते-बजाते हुए भी, ध्यान करते हुए भी, किसी भी काम को करते हुए, किसी भी क्षण। तुम हर काम को बड़े भावपूर्वक, बड़े ध्यानपूर्वक, बड़े डूबे हुए, समग्रता से करो, ग्रेस तुम पर बरसेगा। ग्रेस तुम्हारे लिए पूर्ण होगा। मेरे जाने, शक्तिपात से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है ग्रेस/प्रसाद । रिमझिम-रिमझिम बरसे नूरा नूर जहूर सदा भरपूरा । 'चट मँगनी, पट शादी' की दृष्टि छोड़ो । डूबो, और उबरो । डूबना ही उबरना होगा। उधर डाल पर बैठा पंछी पिऊ-पिऊ बोल रहा है। उसी में डूबा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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