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________________ अन्तर-मौन : मुक्ति की आत्मा कर दिया है, कर्त्तव्य-कर्म सब उसके, उसके लिए, उसे गुरु-शिष्य की श्रृंखला में क्यों डाला जाये । मेरे लिए तुम एक आत्मा हो, मेरा प्यार और भाव उस आत्मा के लिए ही है, शेष तुम मुझे जैसा, जिस रूप में, मानना चाहो, तुम्हारी मौज ! ___ पूछते हो, 'फिर सद्गुरु क्या करते हैं?' सद्गुरु तुम्हारे भीतर-बाहर जो होना है, उसका ध्यान रखते हैं। तुम्हारी माटी को दीया बनाते हैं और अपनी बाती और ज्योति के संस्पर्श से तुम्हारी बाती को सींचते रहते हैं। तुम्हारे भीतर जो है, उसका जन्म तो स्वत: होगा, सद्गुरु उसे जन्म देने में तुम्हारी मदद करते हैं। सद्गुरु यानी सम्यक् गुरु, अच्छे गुरु । गुरु यानी अंधकार को दूर करने वाला । गुरु यानी प्रकाश-पुंज और सद्गुरु यानी सम्यक् प्रकाश-पुंज । राह में चलते राहगीर के लिए जो काम प्रकाश करता है, वही सद्गुरु करता है। प्रश्न का अगला चरण है : “क्या शक्तिपात जरूरी है?"यह बात तुम्हें किस महापुरुष ने समझा दी है । तुम समझदार हो, समझ के मार्ग से चलो। शक्तिपात की तृष्णा और मनोकामना को मन में पालना, किसी सांसारिक तृष्णा से कम नहीं है। सहज में ऐसी घटना घट जाये, तो आनन्दपूर्वक उसे हो जाने देना। यह तुम्हारे लिए शुभ अवश्य है, गुरु और शिष्य के बीच संबन्ध बनाने के लिए यह अच्छी पहल है, पर ऐसा नहीं है कि बगैर शक्तिपात साधना का बीजारोपण और पल्लवन नहीं होता। सच है। और फिर शक्तिपात तो महज बीजारोपण ही है। अभिसिंचन तो तुम्हें करना पड़ेगा। तुम उसमें प्रमाद खा जाओ, तो शक्तिपात, बीजारोपण फलदायी नहीं हो पायेगा। और फिर, शक्तिपात हर किसी पर थोड़े ही किया जाता है। इसके लिए गुरु का तो सशक्त होना जरूरी है ही, शिष्य का भी कुलयोगी होना आवश्यक है। शक्तिपात के मायने हैं तुम्हारी क्षमता गुरु ने पहचानी, तुम्हारी भवितव्यता और पात्रता को गुरु की ज्ञान-दृष्टि ने देखा और गुरु ने अपने दिव्यत्व का, अपनी साधना का तुम्हारे विकास के लिए उपयोग किया। एक कुर्बानी दी। और इसके बदले में शिष्य अपने आपको गुरु के प्रति कुर्बान करता है । यह कुर्बानी कभी व्यर्थ नहीं जाती। 'समय पाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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