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उस समय अगर आप दस मिनट भी सामायिक का भाव स्वीकार कर लेते हैं, तो वह इस अड़तालीस मिनट की सामायिक से श्रेष्ठ है । हर संध्या को प्रतिक्रमण कर लोगे लेकिन हर सुबह पाप से भरी हुई होती है । ऐसे ही जीवनभर केवल बैठक वाला प्रतिक्रमण करते चले जाओगे तो परिणाम कुछ नहीं मिलेगा । पाप की नींव पर पुण्य की दीवारें खड़ी नहीं की जा सकतीं ।
अड़तालीस मिनट का अनुबंध केवल उनके लिए है, जिनका चित्त चंचल है ताकि कुछ देर तो शांति रह सके। मैंने देखा है लोग हजारों सामायिक कर चुके हैं पर चित्त की उद्विग्नता यथावत् है । सामायिक तो चित्त की शांति का उपाय है, इसमें समय का अनुबंध महत्त्वहीन है ।
इक साधे सब सधे
हमारे पड़ौस में एक सज्जन रहते थे। उनके बेटे हमेशा उनसे सामायिक करने का आग्रह किया करते थे । मैंने कहा अगर वे नहीं करना चाहते तो क्यों इतना जोर देते हो ।
उत्तर मिला, कम-से-कम अड़तालीस मिनट तो घर में शांति रहेगी ।
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नेत्रदान और रक्तदान करना क्या उचित है .
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महानुभाव, आप किस दान को उचित समझते हैं । यदि अपने दिए गए रक्त से किसी की जान बच जाती हैं तो इससे बड़ा दान क्या होगा ! हमारी मृत देह जो जलाई जा रही है उसमें से दो आँखें निकालकर अगर किसी नेत्रहीन को लगा दी जाएँ और वह इस दुनिया को देखने के काबिल हो सकता है तो इससे बड़ा दान और क्या होगा ! मैं अधिक कुछ नहीं कहूँगा बस इतना ही कि अगर किसी को रक्त की आवश्यकता हो तो मेरे पास प्रेम से आइए और जितने रक्त की आवश्यकता हो मेरा स्वीकार कीजिएगा। एक बात का और संकेत दूंगा कि जिस दिन यह काया माटी हो जाए उस दिन केवल नेत्र ही नहीं इस काया में से जो अंश मानवता के काम आ सकें जरूर निकलवाइएगा, मानवता को प्रदान कीजिएगा, इससे चन्द्रप्रभ धन्य होगा । (तालियाँ) |
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