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अन्तर- मौन : मुक्ति की आत्मा
[ संबोधि ध्यान-शिविर, अजमेर, १० - ६ - ९६, प्रश्न - समाधान ]
सामायिक केवल अड़तालीस मिनट की ही क्यों होती है ?
आप कहें तो बढ़ा दें (ठहाके) । आप ज्यादा टिके हुए नहीं रह सकते इसलिए लिमिट कर दी। मैं तो कहूँगा चौबीस घंटे सामायिक में रहो । जीवनभर सामायिक में रहो। वह सामायिक कैसी, जो अड़तालीस मिनट में पूरी हो जाए । अड़तालीस मिनट में अभ्यास होता है कि आप कितनी समता - शांति बनाए रख सकते हैं, आरम्भ - समारंभ से स्वयं को मुक्त रख सकते हैं । यहाँ जो अलग से आसन लगाकर बैठे हैं केवल वे ही सामायिक नहीं कर रहे हैं, बल्कि जो दरी पर बैठे हैं वे भी सामायिक कर रहे हैं। ये कितने शांत हैं, प्रसन्न - सौम्य । कोई लड़ाई नहीं कर रहे, इनकी भी सामायिक हो रही है ।
कई बार मौका आता है जब कहा - सुनी का वातावरण निर्मित होता है,
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