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________________ की गति तेज हो गई। सपने का संबंध सांस से आकर जुड़ा। कल एक किताब में मैंने पढ़ा कि रामकृष्ण को माहवारी यानी मासिक धर्म तक शुरू हो गया था। यह बात आश्चर्यजनक है। पर कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पुरुष ही क्यों न हो अगर निरंतर सोचता चला जाए कि मैं स्त्री, मैं स्त्री, मैं स्त्री.....तो उसका बैठना, उठना, चलना -सभी स्त्री की तरह हो जाएगा। आप लोगों को ध्यान होगा कि बीकानेर से एक सज्जन आते हैं, छजलानी गोत्र है उनका । पुरुष हैं पर स्त्री के रूप में रहते हैं। उनकी पत्नी का जब देहावसान होने वाला था, तो पत्नी का जीव अपने कपड़े-लत्तों में अटक गया। उसने अपने पति से कहा- इन गहनों, कपड़ों का मेरे बाद कौन उपयोग करेगा? इन्हें कौन पहनेगा? वह भूल से पूछ बैठी- क्या तुम इनको पहन लोगे? उन्होंने हाँ कह दी और पत्नी के प्राण निकल गये। उन्होंने अपना कर्त्तव्य समझा और हमेशा स्त्री के कपड़े धारण करने लगे। फैक्ट्री, बाजार, विवाहोत्सव -कहीं भी जाते हैं, तो स्त्री के वेश में जाते हैं। स्त्री के कपड़े पहनते-पहनते वे भूल ही चुके हैं कि वे पुरुष हैं। कायागत अंगविशेष के कारण वे पुरुष भले ही हों पर अब वह स्त्री हो चुके हैं। मन में, हृदय में, आत्मा में यह भाव पैठ चुका है कि मैं स्त्री हूँ| राधा संप्रदाय में दीक्षित होने के कारण स्वयं रामकृष्ण भी भूल गए कि वे पुरुष हैं। यह तो जब उनकी पत्नी ने ही झकझोरा तो उन्हें होश आया। फिर वे दूसरे संप्रदाय में गए। हर संप्रदाय के जो उसूल हैं, उन्हें ईमानदारी के साथ अपने भीतर जिया और पहचाना कि उसके द्वारा क्या हो सकता है। यह परमात्मा को पाने का पहला कार्य है। एक प्रसिद्ध नारा है ‘स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है'। इसी तरह भगवत्ता भी हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। कोई भी व्यक्ति इस अधिकार से किसी को वंचित नहीं कर सकता। व्यक्ति को जन्म-जन्मांतर से ही परमात्मा उपलब्ध है, इसलिए उसे परमेश्वर की याद भी नहीं आती। व्यक्ति से परमात्मा बिछुड़ जाए, तभी तो परमात्मा की याद आएगी। फिर तो आदमी बिना परमात्मा के ऐसे ही छटपटाएगा, जैसे बिना पानी के मछली छटपटाती है। मछली जब तक सागर में होती है, तब तक उसे सागर का पिया बिन झूलं/१२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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