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________________ गहरी हो, अन्तर्-बोध जगे, तो ही अहंकार, मैं का भाव तिरोहित हो सकता है । अंधकार में रोशनी की कोई किरण उतर सकती है । जब तक मेरे का भाव है, तब तक आत्मा से भी दूर होंगे । 'मेरा' तो संसार है, सम्बन्ध है - जब यह भाव विसर्जित होता है, तब आत्मा प्रकट होती है। जब 'मेरे' का, 'मैं' का भाव भी विसर्जित हो जाता है, तब परमात्मा का प्रकाश, जीवन का एक गहरा आनंद, उसकी गहरी अनुभूति और परम धन्यता प्रकट होती है । रामकृष्ण जैसा व्यक्ति मिलना दुर्लभ है। वे हर धर्म में जिए, हर धर्म को समझने के लिए उसमें प्रविष्ट हुए । उनके जीवन की एक घटना है रामकृष्ण कभी राधा संप्रदाय में भी दीक्षित हुए थे । राधा संप्रदाय का यह उसूल है कि व्यक्ति स्वयं को राधा माने और कृष्ण को परमात्मा माने । रामकृष्ण ने स्वयं को इतना राधामय बना लिया कि उनमें राधा का भाव उत्पन्न हो गया। बड़े विस्मय की बात है कि पुरुष होते हुए भी उनमें स्त्रैण - भाव पनप गया । स्त्री मानने पर तुम में अगर स्त्री का भाव सघन होता चला गया तब तुम्हारे सामने से कोई पुरुष गुजरेगा, तो तुम सोचोगे कि मेरा घूंघट कहाँ है? प्रयोग करना चाहो तो प्रयोग करके देख लो। तुम अपनी कुर्सी पर बैठ जाओ और कल्पना करो कि मैं टहलने के लिए निकल गया हूँ। आप मन ही मन चलते चले जा रहे हैं और देख रहे हैं कि कोई झरना आ गया है। झरने में कल-कल का नाद हो रहा है। पानी के छींटे उछल रहे हैं । सचमुच तुम्हें लगेगा जैसे छींटे तुम्हें भिगो चुके हैं। इतना आनंद मिलेगा, जितना झरने के पास से गुजरने पर मिलता है । इसी तरह दस मिनट तक दौड़ने की कल्पना करो। कुछ देर बाद तुम्हें लगेगा कि सांस उतनी तेज चलने लगी है, जितनी दौड़ने पर चला करती है। हाल ही में एक सज्जन मेरी बगल में सोये थे । मैं जब मध्य-रात्रि में जगा, तो मैंने देखा कि उनकी सांसें बहुत तीव्र चल रही थीं । मैं चकित हुआ। मैंने उन्हें झकझोरा । ताज्जुब ! झकझोरते ही उनकी सांस सामान्य हो गई। सवेरे वे सज्जन उठे, तो मैंने पूछा- रात में क्या सपना देख रहे थे। उन्होंने कहा हां, मैं सपने में चोर का पीछा कर रहा था । वे सपने में दौड़ रहे थे । दौड़ते-दौड़ते उनकी सांसें फूल गईं और सांस Jain Education International सो परम महारस चाखै/११६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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