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________________ अहसास नहीं होता। तभी तो वह अन्य मछलियों से पूछा करती है कि अपने पूर्वजों की परम्परा में सागर जैसी कोई विशाल चीज बताई गई है, वह कहां है? दूसरी कहती है कि सुन तो मैंने भी रखा है पर मैं भी तेरे जैसे ढूंढ रही हूँ। सागर में रहकर भी सागर की खोज! एक मछली दूसरी से पूछ रही है और दूसरी तीसरी से। सब एक-दूसरे से पूछ रही हैं। जब मछली सागर से अलग होती है, तब उसे पता चलता है कि जिसमें वह रहती थी, वही तो सागर था। बाबा कहते हैं कि मछली तो मरते समय छटपटाएगी पर हम तो जीवित ही परमात्मा के लिए छटपटा रहे हैं। मीरा का एक पद है- अंसुअन जल सींच-सींच, प्रेम बेलि बोई । अब तो बेलि फैल गई आनंद फल होई। एक गहरा आर्तराग है यह पीड़ा का। आंसुओं के जल से सींच-सींच कर प्रेम की बेल बोई है। इस प्रेम को दुनियादारी का छिछला प्रेम मत समझ बैठना। यह आत्मा के आंसुओं से भीगा है। आंसुओं से सींचकर यह बेल बोई गई है। चाहे लोग हंसें या मजाक उड़ाएं, जो होना था, सो हो गया। अब तो तन-मन में, रग-रग में प्रेम की बेल फैल गई है। अब तो जो होगा सो देखा जाएगा। यह स्वीकारने का भी साहस होना चाहिये कि जो होगा सो देखा जाएगा। तभी तो बाबा कहते हैं कि अपने प्रिय के बिना मैं रात-दिन तड़पता हूँ पर तुम्हें यह कौन समझाए कि तुम्हारा प्रिय तुम्हारे साथ जीता है। तुम्हारे साथ छिया-छी खेलता है, तुम्हारे आंसुओं को पीता है। सूरज की एक किरण दूसरी से पूछती है कि क्या तुमने सूरज को देखा है? उसे यह बोध नहीं है कि जहां से मेरा जन्म हुआ है, वही तो सूरज है। किरण बढ़ती चली जाती है, क्षितिज-पार सूरज को ढूंढने के लिए कि आखिर सूरज है कहाँ? सूरज अपने पास है। सूरज तो वहीं है, जहां किरण का जन्म हुआ। किरण सूरज का सृजन है, सूरज की सन्तान है। सूरज किरण का अस्तित्व है, किरण का जनक है। ___ आदमी की आदत बाहर ढूंढने की है क्योंकि उसकी सारी खोज इंद्रियों के द्वारा होती है जबकि परमात्मा इन्द्रियगत नहीं, वह तो अतीन्द्रिय अनुभूति है। जहाँ इंद्रियों के भाव सुषुप्त होंगे, वहीं अतीन्द्रिय भाव जागृत होंगे। मन के संवेग, उद्वेग, इच्छाएं और विकल्प जब सो परम महारस चाखै/१२१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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